पुलिस के शक से बचाने के लिए विद्यार्थी जी ने भगत सिंह को ‘प्रताप ' कार्यालय में संपादन विभाग में काम दिया, जहां वे ‘बलवंत' के छद्म नाम से लिखते भी थे।
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लेकिन न तो उस के लिए खुले दिल से संसाधन जुटाए गए, न उस के संपादन विभाग को वैसी जिम्मदारी सँभालने के लिए प्रशिक्षित किया गया, न तैया र.
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मेरे साथ स्वदेशकुमार (तब जनरल मैनेजर, पहले संपादन विभाग अध्यक्ष), खरे (ऊपर ज़िक्र हो चुका है), मनमोहन कुमार भार्गव (प्रैस के मैनेजर).
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गुवाहाटी-2012-09-05 20: 29:59 दैनिक पूर्वोदय (गुवाहाटी,असम से प्रकाशित) के संपादन विभाग मे सलाहकार संपादक के पद पर कार्यरत श्री विनोद रिंगानिया असम सहित पूरे पूर्वोत्तर राज्यों के हर घटना क्रम पर गरुड़-चक्षु रखते हैं।
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इस तरह (चाहे निम्नतम स्तर से ही सही) मुझे सरिता के समारंभ की प्रक्रिया को देखने का मौक़ा मिला और बरसोँ बाद मैँ संपादन विभाग मेँ विश्वनाथ जी का दाहिना हाथ बन गया.
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नवयुग ' के संपादन विभाग से उस के विख् यात संपादक तक. ‘ समाज कल् याण ' मासिक से ‘ दैनिक हिंदुस् तान ' के संपादक तक. फिर ‘ नवभारत टाइम् स ' के मुंबई संपादक तक.
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(ख़ुशवंत सिंह ने ग़ालिब के अपने अँगरेजी अनुवाद के रिलीज़ समारोह मेँ कहा कि जब वह संपादन विभाग की माँग पर बार बार सुधार करते तंग आ गए तो कहना पड़ा-बस, अब और नहीँ. छापना है तो छापो वरना …!)
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संपादन विभाग में जो विद्वान काम करते थे उन में कई देश विदेश में प्रसिद्ध थे-डा. शशधर सिन् हा, ए. ऐस. रामन, ख़ुशवंत सिंह, भवानी सेन गुप् त, जोश मलीहाबादी, अर्श मलसियानी, जगन्नाथ आज़ाद, देवेंद्र सत् यार्थी, मन् मथ नाथ गुप् त, चंद्रगुप् त विद्यालंकार …
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उसके मन में रह-रह कर उत्कंठा होने लगी-कुछ भी हो हिंदी का अपना थिसारस तो होना ही चाहिए! लेकिन एक अहम सवाल-यह चाहिए, हो कैसे? देर तक उद्वेलित होने के बाद आखिर उन्होंने अपने मन को समझा लिया-कोई न कोई विद्वान इस जरूरत को महसूस करेगा और एक न एक दिन हिंदी का अपना थिसारस जरूर बनेगा! विश्वनाथ ने अरविंद कुमार को अंगे्रजी संपादन विभाग में भेज दिया।