इन वेबसाइटों की हिंदी में स्थिति का आंकलन करने के लिए किए गए इस सर्वे में कुछ वेबसाइट को नमूने के तौर पर संयोगी (Randomly) तरीके से चुन लिया गया।
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इन वेबसाइटों की हिंदी में स्थिति का आंकलन करने के लिए किए गए इस सर्वे में कुछ वेबसाइट को नमूने के तौर पर संयोगी (Randomly) तरीके से चुन लिया गया।
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देह गेह कोई न तुम्हारा नश्वर संयोगी मधुकर तुम तो प्रिय की गलियों में फिरने वाले योगी निर्झर बहने दे उसके प्रवाह में सत्ता संज्ञाहीन परम टेर रहा है आशुतोषिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।217।।
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संयोगी वात्सल्य की तुलना में वियोगी वात्सल्य कितना तीक्ष्ण हो सकता है, इसका अनुमान 'मेरे गीत' के उन गीतों से मिलता है जिनमें सतीश सक्सेना जी ने माँ से बिछोह की पीड़ा को कागज में उड़ेल दिया है।
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इसके बावजूद लाला जी बैरागी भाव से कहते हैं ‘ मैं इंद्रावती नदी के बूंद-बूंद जल को / अपने दृग-जल की भंति जानता आया हूं / दुख पर्वत-घाटी जैसे मेरे संयोगी / सबकी सुन-सुन, जिनकी बखानता आया हूं … ।
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इसमें प्राकृत भाषा का जो स्वरूप दिखाई देता है उसकी प्रमुख विशेषता यह है कि शब्दों के मध्यवर्ती क् ग् च् ज् त् द् प् ब् य् इन अल्पप्राण वर्णों का लोप होकर केवल उनका संयोगी स्वर (उद्वृत्त स्वर) मात्र शेष रह जाता है।
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संयोगी: पाठ या छबियों के पाठ जो एक निष्क्रिय प्रयोगकर्ता इन्टरफेस घटक के हिस्से हैं, जो शुध्द सजावटी हैं, जो किसी को भी दिखाई नहीं देते, या जो किसी ऐसे चित्र के हिस्से हैं जिसमें महत्वपूर्ण अन्य दृश्य सामग्री है, को कॉन्ट्रास्ट की जरूरत नहीं है ।
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संयोगी: पाठ या छबियों के पाठ जो एक निष्क्रिय प्रयोगकर्ता इन्टरफेस घटक के हिस्से हैं जो शुद्ध सजावटी हैं, जो किसी को भी दिखाई नहीं देते, या जो किसी ऐसे चित्र के हिस्से हैं जिसमें महत्त्वपूर्ण अन्य दृश्य सामग्री है, को कॉन्ट्रास्ट की जरूरत नहीं है ।
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इसके बावजूद लाला जी बैरागी भाव से कहते हैं ‘मैं इंद्रावती नदी के बूंद-बूंद जल को / अपने दृग-जल की भंति जानता आया हूं / दुख पर्वत-घाटी जैसे मेरे संयोगी / सबकी सुन-सुन, जिनकी बखानता आया हूं...।' नाटक, रूपक, निबंध और कहानी आदि अन्यान्य विधाओं में इनका लेखन रहा है ।
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उत्तर से दक्खिन, पूरब से पश्चिम और धरती से आकाश तक जो कुछ भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारी प्राण-सत्ता को प्रभावित करता है वह सब कुछ उसका विषय है-चाहे वह अंधकार हो या प्रकाश, जन्म हो या मृत्यु, सुख हो या दु:ख, राग हो या विराग, धूप हो या छांह, संघर्ष हो या शान्ति, चाहे वह किसी प्रवासी की सूनी साँझ हो अथवा किसी संयोगी की सुबह, चाहे वह तपती-जलती हुई किसी श्रमिक की दोपहर हो अथवा प्रणय-केलि में रत किसी प्रेयसी की चाँदनी रात।