इतिहास की दृष्टि से जातिप्रथा को भारतीय समाज की प्रयोग-शाला में किया गया मनुष्य का ऐसा प्रयोग कहा जा सकता है, जिसका उद्देश्य समाज के विविध वर्गो का पारस्परिक अनुकूलन और संयोजन करना था ।
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बोर्ड की बैठक का संयोजन करना तथा संगम अनुच्छेद परिवर्तित करने के तथा परिणामस्वरूप नाम को विशेष संकल्पों द्वारा बदलने के लिए आम बैठक का संयोजन करने के लिए समय का निर्णय करना, कार्य सूची प्रस्तुत करना।
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गीत को आवाज़ देना और उसे ध्वनि संयोजन करना और संगीत देना दोनों अलग-अलग विधाऐं हैं, यह ज़रूरी नहीं कि जो अच्छा गायक हो वह अच्छा संगीतकार भी हो, और ठीक इसके उलट भी यही नियम लागू होता है।
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बोर्ड की बैठक का संयोजन करना तथा संगम अनुच् छेद परिवर्तित करने के तथा परिणामस् वरूप नाम को विशेष संकल् पों द्वारा बदलने के लिए आम बैठक का संयोजन करने के लिए समय का निर्णय करना, कार्य सूची प्रस् तुत करना।
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जहां तक कविता, कहानी, और अन्य विधाओं के इस्तेमाल की बात है तो मुझे लगता है कि यथार्थ और समय की मुठभेड़ को व्यक्त करने मेँ अब सिर्फ गद्य काफी नहीं है इसलिये एक से अधिक विधाओं के भीतर उतरना और उनका संयोजन करना ज़रूरी है।
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अपने समकालीनों और अपनी दो-तीन परवर्ती पीढ़ियों के लेखको से निरंतर पत्र-व्यवहार करना और व्यक्तिगत रूप से अनेक नगरों में जाकर ऐसा संयोजन करना जिससे नवगीत से जुडे तमाम लेखक एक मंच पर एकत्र हो सकें, ऐसा कार्य है, जिसका सही-सही मूल्याकन तो आने वाला समय ही कर पाएगा।
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संस्थान की स्थापना के उद्देश्य पारम्परिक संस्कृत विद्या व शोध का प्रचार, विकास व प्रोत्साहन है और उनका पालन करते हुएः-#संस्कृत विद्या की सभी विधाओं में शोध का आरम्भ, अनुदान, प्रोत्साहन तथा संयोजन करना है, साथ-साथ शिक्षक-प्रशिक्षण तथा पाण्डुलिपि विज्ञान आदि को भी संरक्षण देना जिससे पाठमूलक प्रासंगिक विषयों में आधुनिक शोध के निष्कर्ष के साथ सम्बन्ध स्पष्ट किया जा सके तथा इनका प्रकाशन हो सके।