भारतीय दण्ड संहिता की धारा 361 के अनुसार विधिपूर्ण संरक्षक की संरक्षकता मे से अप्राप्तवय को उसके संरक्षक की सहमति के बिना ले जाना अर्थात संरक्षक की सहमति के बिना उसकी संरक्षकता से हटाना मात्र व्यपहरण का अपराध गठित करता है।
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भारतीय दण्ड संहिता की धारा-363 का आरोप सिद्व करने के लिए अभियोजन पक्ष को सर्वप्रथम यह सिद्व करना आवश्यक है कि जिस व्यक्ति को व्यपहरित किया गया है वह नाबालिग था, द्वितीय-यह कि वह नाबालिग व्यक्ति किसी विधिक संरक्षकता में था।
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उस समय छोटी पूंजी वाले ग्राम एवं कुटीर उद्योग जो पहले ही अपने अस्तित्व के संकट एवं आपसी स्पर्धा से जूझ रहे हैं, बड़ी पूंजीवाले उद्योगों के सामने बाजार में कैसे टिक पाएंगे-संरक्षकता का सिद्धांत इसका कोई समाधान नहीं देता.
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उदयपुर जिले में विभिन्न विभागों के सहयोग से मानसिक विमन्दित, प्रमस्तिष्कघात, स्वरायण्ता एवं बहुविकलांगता के तैयार करवाये गये विधिक संरक्षकता प्रमाण-पत्रों के आवेदन पत्रों के आधार पर मानसिक विमन्दित विशेष योग्यजनों को विधिक संरक्षकता प्रमाण-पत्र (गार्जियनशिप सर्टिफिकेट) जारी किए गए।
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उदयपुर जिले में विभिन्न विभागों के सहयोग से मानसिक विमन्दित, प्रमस्तिष्कघात, स्वरायण्ता एवं बहुविकलांगता के तैयार करवाये गये विधिक संरक्षकता प्रमाण-पत्रों के आवेदन पत्रों के आधार पर मानसिक विमन्दित विशेष योग्यजनों को विधिक संरक्षकता प्रमाण-पत्र (गार्जियनशिप सर्टिफिकेट) जारी किए गए।
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गवाह पी0ड0-1 पीड़िता ने इस कथन का भी समर्थन किया है कि अभियुक्त ने षादी करने का झॉसा देकर उसे बहला फुसला कर उसे उसके पिता की विधिक संरक्षकता से दूर लेजाकर उसकी इच्छा और सहमति के बिना उसके साथ षारीरिक सम्बन्ध स्थापित किये तथा उस समय पीड़िता की उम्र 13 वर्श थी।
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बच्चे सामान्यतः रोज स्कूल जाते है, बाजार जाते है वहॉ से घर वापस लौटते है यहॉ तक कि कभी-कभी अपनी रिस्तेदारी में जाते है वहॉ से घर लौटते है ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता है कि जब-जब बच्चे अपने घर से बाहर जाते है तो वे अपने माता पिता की संरक्षकता में नहीं होते है।
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इस तरीके से पीड़िता द्वारा अपने बयान अन्तर्गत धारा 164 दण्ड प्रक्रियां संहिता में अभियुक्त द्वारा उसे बहला फुसला कर षादी करने का झॉसा देकर उसे उसके पिता की विधिक संरक्षकता से व्यपहरण किया और उक्त व्यपहरण अभियुक्त द्वारा पीड़िता की इच्छा के विरूद्ध विवाह करने तथा पीड़िता से षारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिये विलुब्ध करने के लिये किया।
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इस मामले में पी0डब्ल्यू0-1 कु0अनीता अपने मॉ से कह कर बाजार से शैम्पू लेने गयी थी इस प्रकार वह अपनी माता की अनुमति से बाजार शैम्पू लेने गये थी भले ही उसके दिमाग में घर वापस आने की बात न रही हो मगर यह माना जायेगा कि उस समय जब अभियुक्त द्वारा उसे मोटर साईकिल में बिठाया गया वह अपनी माता की संरक्षकता में थी।
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धारा-361भा. द. सं. यह उपबन्धित करती है कि, जो कोई किसी अप्राप्तवय यदि वह नर हो तो 16 वर्ष से कम आयु वाले को और यदि नारी हो तो 18 वर्ष से कम आयु वाली को उसके विधि पूर्ण संरक्षक की संरक्षकता में से ऐसे संरक्षक की सम्मत के बिना ले जाता है या बहका ले जाता है तब वह ऐसे अप्राप्तवय या ऐसे व्यक्ति का विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण करता है।