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संश्लेष उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.ऐसों को अशोक वाजपेयी की ये काव्य-पंक्तियाँ याद रखनी चाहिए कि “जीवन में आभिजात्य तो आ जाता है / गरिमा आती है बड़ी मुश्किल से।”कुंवर नारायण की कविता और व्यक्तित्व, दोनों में ही जिस उदात्तता, गरिमा और संवेदनशीलता का विरल संश्लेष है;

42.कोई भी लेखक अपने महत्व या अपनी भूमिका की वजह से नहीं, बल्कि इस तथ्य से पहचाना जाता है कि वह बहस में कितना शामिल है, और विषय के साथ भाषा के सम्बंधों को कितने संश्लेष में सोच पाता है।

43.और यह विलक्षणता इस बात में नहीं है कि यह पुस्तक हमें यह प्रक्रिया ‘बताती ' है, विलक्षणता साध्य का गल्पावतार है जहाँ विश्लेषण (या व्याख्याशास्त्र) के साधन और विधि-निषेध ही, बगैर किसी रूपकात्मक भूमि और भूमिका के, संश्लेष के साधन और विधि-निषेध बन जाते हैं:

44.जब मोहनीय कर्म नामक जड़ पुद्गलों का आत्मा के साथ चिपकना-बंधना-एकमेकपना या संश्लेष सम्बन्ध होता है तब वे कर्म परमाणु आत्मा के साथ कुछ समय टिक कर फिर फल देकर, तथा फलदान के समय आत्मा को विमूढ़ (विमोहित), रागी, द्वेषी आदि रूप परिणत करके आत्मा से अलग हो जाते हैं।

45.शायद रचनाकार को रचते समय अपने वैराट्य का अनुभव न होता हो, उसे पता न चल पाता हो कि वह प्रकृति की तरह ही एक गर्भ में बदल गया है, एक ऐसा गर्भ, जहां वर्तमान का बीज है, अतीत के संश्लेष से उपजा समकाल है और भविष्य पर पडने वाली उसकी अज्ञात छाया है।

46.जिस तरह हीगेलियन द्वंद्ववाद विचारों की गत्यात्मकता पर आश्रित है और कालचाप से आपकी प्रत्यवस्थाएं निर्मित कर उन्हें एक उच्च संश्लेष में बदल लेता है, उसी तरह नामवर का संरचनावादी दृष्टिकोण भी एक कल्पित पूर्णता का संश्लेष बनकर रह जाता है जिसका इतिहास, अनुभव और मानवीय कार्य व्यापारों तथा भावनाओं के मूर्त विश्व से कोई सीधा संबंध नहीं है।

47.जिस तरह हीगेलियन द्वंद्ववाद विचारों की गत्यात्मकता पर आश्रित है और कालचाप से आपकी प्रत्यवस्थाएं निर्मित कर उन्हें एक उच्च संश्लेष में बदल लेता है, उसी तरह नामवर का संरचनावादी दृष्टिकोण भी एक कल्पित पूर्णता का संश्लेष बनकर रह जाता है जिसका इतिहास, अनुभव और मानवीय कार्य व्यापारों तथा भावनाओं के मूर्त विश्व से कोई सीधा संबंध नहीं है।

48.बाद में हमने यह भी देखा कि श्रम का भी वैसा ही दोहरा स्वरूप है, क्योंकि जहाँ तक कि वह मूल्य के रूप में व्यक्त होता है, वहां तक उसमें वे गुण नहीं होते, जो [...] उपयोग-मूल्य एंगेल्स पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया विनिमय-मूल्य श्रम-विभाजन श्रम-शक्ति उत्पादक गुणात्मक जिंस पण्य परिमाणात्मक मूल्य विनिमय पहली दृष्टि में पण्य दो चीजों-उपयोग-मूल्य और विनिमय मूल्य-के संश्लेष के रूप में हमारे सामने आया था.

49.वह किसी कृति को अद्वितीय तरीके से पहचाने और फिर तबाह हो जाए-उसमें निहित मूल्यदृष्टि, विचारशीलता, तर्कपद्धति भले ही अतीत से भविष्य तक प्रवहमान हो, लेकिन उस व्याख्या की हिस्टोरिकल प्लेसिंग को दुहराना असम्भव हो, आलोचना प्रक्रिया के जिन क्षणों में एक कृति का सत्य व्यापक सार्वभौमिक सत्य के साथ एक विशेष संश्लेष में चमके, उसके बाद वह क्षण बिलकुल वैसे दुबारा घटित न हो, आइंदा वह किसी और तरीके से हो पाये।

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