इस लोकसभा चुनाव में भी करुणानिधि के खिलाफ़ “ सत्ता-विरोधी ” लहर चल रही थी, करुणानिधि के परिवारवाद से सभी त्रस्त हो चुके थे (अब तो दिल्ली भी त्रस्त है और शुक्र है करुणानिधि ने सिर्फ़ तीन ही शादियाँ की) ।
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नई दिल्ली सत्ता-विरोधी मजबूत लहर, कांग्रेस में आपसी कलह के अलावा बंद नालियों, टूटी सड़कों, दूषित जल आपूर्ति एवं अनियोजित विकास जैसी आम समस्याओं की वजह से यातायात मंत्री रमाकांत गोस्वामी के लिए अपनी राजेंद्र नगर की सीट बचाना काफी मुश्किल हो सकता है।
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उत्तर-प्रदेश में चुनावी सुगबुगाहट के शुरु होने के साथ ही बच्चन परिवार का ऐश्वर्या को साथ लेकर यूपी के मंदिरों में माथा टेकने जाना क्या सिर्फ़ इत्तेफ़ाक था? चुनाव में सत्ता-विरोधी लहर के हिसाब से बच्चन परिवार के दोस्त अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव को इससे लाभ ही हुआ होगा.
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वैसे यह अंदाज लगाना औचित्यपूर्ण है कि सत्ता-विरोधी कारक मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और संभवत: गुजरात जैसे भाजपा शासित राज्यों में कांग्रेस के पक्ष में जा सकते हैं, जहां यह दूसरे नंबर की पार्टी है लेकिन यूपीए के सहयोगी दलों के लिए कांग्रेस के जरा से फायदे के कारण बहुत कठिनाई पैदा हो सकती है।
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हालांकि यह मुगालता उसे भारी पड़ सकता है, क्योंकि यदि सरकार नहीं गिरी, चुनाव अगले साल ही हुए, मानसून बेहतर रहा और कृषि उत्पादन बम्पर होने से कहीं महंगाई दर कम हो गई, तो चार राज्यों में जहाँ भाजपा सत्ता में है वहाँ “ सत्ता-विरोधी ” (Anti-incumbency) वोट पड़ने से कहीं मामला उलट न जाये और एक बार फ़िर से “ धर्मनिरपेक्षता ” की बाँग लगाते हुए कांग्रेस सत्ता में आ जाये।