| 41. | का मत है कि काव्य किसी जाति के सत्य-असत्य अथवा शिष्टता का आधार होता है।
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| 42. | सत्य-असत्य, सभ्यता के आरम्भ से ही धर्म एवं दर्शन के केद्र-बिंदु बने हुये हैं।
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| 43. | लेकिन सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म, दुराचार-सदाचार, सुर-असुर आखिर हैं क्या? क्यों विजयादशमी का पर्व हम मनाते हैं?
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| 44. | सत्य-असत्य, सभ्यता के आरम्भ से ही धर्म एवं दर्शन के केंद्र बिंदु बने हुये हैं।
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| 45. | सत्य-असत्य, भला-बुरा, आराम और तकलीफ, शुरू से आखिर तक मैं ही हूं।
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| 46. | का मत है कि काव्य किसी जाति के सत्य-असत्य अथवा शिष्टता का आधार होता है।
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| 47. | सत्य-असत्य पाप-पुण्य स्वाभिमान, अभिमान सुकर्म, कुकर्म.... सबकी दिशाएं मैं के बिंदु...
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| 48. | इसका सांकेतिक प्रयोजन यह है कि सत्य-असत्य की परीक्षा के लिए स्वविवेक ही निष्कर्ष है ।
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| 49. | इसका सांकेतिक प्रयोजन यह है कि सत्य-असत्य की परीक्षा के लिए स्वविवेक ही निष्कर्ष है ।
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| 50. | वैचारिक क्रांति में विवेक होता है, बोध होता है, सत्य-असत्य का ज्ञान होता है।
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