गुरु अर्जुनदेव ने इस ग्रन्थ में बंगाल के जयदेव से लेकर सिंन्ध के सधना तक और मुल्तान के शेख फरीद से लेकर महाराष्ट्र के नामदेव तक फैले 15 सन्तों की वाणियों का चयन किया है और उसे एक पूज्य धर्मग्रन्थ बना दिया।
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कहलाने वाले विधायकों की जरूरत है और उन्हें अपनी कुर्सी और खुराक के लिए मायावती की. कमाल है कैसे आपको नहीं दिख रहा कि ये मायाभक्ति नहीं कुर्सीभक्ति है.जिस दिन स्वहित सधना ख़त्म उस दिन सरोकार ख़त्म,माया और सबकी पुरानी हिस्ट्री है.
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आश्रम ही तो बनये गये हैं ना? डिस्को तो नहीं? अगर कोई साधक अपनी सधना और ध्यान करना चाहे तो उसको आश्रम के अलावा और कहीं आदर्श स्थान नहीं मिल सकता तो साधकों के लिये स्थान बनाए गये हैं तो इसमें क्या बुराई है?
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शेख़ खरीद, जयदेव, त्रिलोचन, सधना, नामदेव, वेणी, रामानन्द, कबीर, रविदास, पीपा, सैठा, धन्ना, भीखन, परमानन्द और सूरदास 15 संतों की वाणी को आदिग्रन्थ में संग्रहीत करके गुरुजी ने अपनी उदार मानवतावादी दृष्टि का परिचय दिया।
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सब जान-बूझ अनजान बन रहे योगी, क्यों नहीं मुझे वरदान बन रहे योगी? यह योग सधना किसके हित अपनाई? चढ़ते यौवन में यह विरक्ति क्यों आई? क्या साध किसी की रह जाएगी प्यासी? यह रम्य रूप, मन में क्यों घनी उदासी?” “वरदान बनूँगा कैसे मैं कल्याणी, गृह-हीन पथिक, बिल्कुल नगण्य-सा प्राणी।
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जब उसने तिनके ला कर रखने शुरू किये तभी हम लोग सोचते थे कि घर के बाहर इतनी सारी और भी जगहें हैं, जहाँ छाया भी है और तेज हवा से भी बचाव है फिर वह ऎसी जगह क्यों घोसला बना रही है जहाँ उसका सधना भी मुश्किल लग रहा है.
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एक दिन एक संत सधना जी की दुकान पर आया और विनती की कि ' हे सधने! यह काला पत्थर मुझे दे दो, मैं इसकी पूजा-अर्चना किया करूंगा | यह सालगराम है, तुम कोई अन्य पत्थर रख लो | यह तुम्हारे लिए भार तोलने के कार्य योग्य है | '
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हाकिम का हुक्म और लोगों के शोर मचाने पर भक्त सधना जी को हत्यारा मान लिया गया और उसके हाथ काट देने का हुक्म हाकिम ने वापिस न लिया | सधना के हाथ काट दिए गए | हाथ काटे गए तो परमात्मा ने हाकिम को बताया कि असली कातिल सधना नहीं अपितु एक नारी है |
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हाकिम का हुक्म और लोगों के शोर मचाने पर भक्त सधना जी को हत्यारा मान लिया गया और उसके हाथ काट देने का हुक्म हाकिम ने वापिस न लिया | सधना के हाथ काट दिए गए | हाथ काटे गए तो परमात्मा ने हाकिम को बताया कि असली कातिल सधना नहीं अपितु एक नारी है |
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हाकिम का हुक्म और लोगों के शोर मचाने पर भक्त सधना जी को हत्यारा मान लिया गया और उसके हाथ काट देने का हुक्म हाकिम ने वापिस न लिया | सधना के हाथ काट दिए गए | हाथ काटे गए तो परमात्मा ने हाकिम को बताया कि असली कातिल सधना नहीं अपितु एक नारी है |