सनातन का नियम हे की जो किसी को जिन्दा करने की शक्ति रख ता हो वह मोट भी दे सकता हे | ऐसा करने का समर्थ केवल भगवान में ही है |
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इस प्रकार शून्य (0) नैरन्तर्य अथवा सनातन का द्वार बन जाता है ; शून्य के वृत्त से सनातन आवर्तन का सिद्धान्त उद्भूत होता है-जिससे अधिक युक्तिसंगत और क्या बात होगी?
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ऐसे में पाँच लाख करोड़ रुपयों कि संपत्ति को देखकर भी त्रावणकोर के वंशज जिस अंदाज में इसे मंदिर कि संपत्ति घोषित का रहे है यह उनके प्रखर सनातन का जीवंत प्रमाण है ।
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आभार रणबीर जी, आपने नयी जानकारी दी! मगर आपका यह वक्तव्य “ बौद्धों और इनके मठों का पतन होने से सनातन का जो उदय हुआ ” पुनर्चिन्तन की मांग करता है..
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हमें इस सनातन धर्म पर भी बड़ी हँसी आती है और कुढ़न होती है कि इस सनातन का कुछ ओर-छोर भी है दुनिया की जितनी बुराई और बेहूदगी है सब इस सनातनधर्म में भरी हुई है।
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प्रिय विजेंद्र जी, आपका वैचारिक समर्थन बड़ा आत्मबल प्रदान करता है| मुझे ये कहने में तनिक भी झिझक नहीं होती कि सनातन का मतलब कायर नहीं सहिष्णु है इसका गलत मतलब किसी को नहीं निकालना चाहिए|
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हम आज बहुत गर्व से राम-कथा में अथवा भागवत-कथा में, कथा के अंत में कहते हैं, बोलिए-सत्य सनातन धर्मं कि!! जय! तनिक विचारें? सनातन का क्या अर्थ है?
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भागवद गीता के अनुसार सनातन का अर्थ होता है वो जो अग्नि से, पानी से, हवा से, अस्त्र से नष्ट न किया जा सके और वो जो हर जीव और निर्जीव में विद्यमान है.
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भागवद गीता के अनुसार सनातन का अर्थ होता है वो जो अग्नि से, पानी से, हवा से, अस्त्र से नष्ट न किया जा सके और वो जो हर जीव और निर्जीव में विद्यमान है.
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(बुद्ध जो स्वयं राजा थे उन्हे दलितों का भगवान बना दिया गया और इसे सनातन धर्म से अलग करके बौद्ध धर्म बना दिया गया जिसके बाद से सनातन धर्म की वर्ण संरचना टूट गई और सनातन का सत्य अलग हो गया)