शरद ऋतु के मध्य काल के बाद गेहूं, मक्का, बाजरा आदि मोटे अनाजों का सेवन दूध, घी, गुड़, राव के साथ अथवा हल्के मसालों वाला सब्जा बदनाव के साथ खाना चाहिए ।
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2. यह सहरा कैसा सहरा है ना इस सहरा में बादल है ना इस सहरा में बरखा है ना इस सहरा में बाली है ना इस सहरा में खोशा है ना इस सहरा में सब्जा है ना इस सहरा में साया है
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मेरा जिस्म तो मर जाएगा / लेकिन सब्जा शबनम के पैमाने लेकर/आब्ला-पा लोगों की राहों में बैठेगा/लेकिन चाँद हर एक घर में लोरी गाएगा/ लेकिन सूरज हर-एक दरवाज+े पर जाकर दस्तक देगा/वादे-सहर खुशबू को कन्धों पर बिठलाकर दुनिया दिखलाने निकलेगी/फिर मैं कैसे मर सकता हूँ?३
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हालत सब्ज: यानी सब्जा जिसका मतलब है हरी घास, हरियाली, हरे रंग का या सांवला ये है कि अब आलू गोभी समेत पीले रंग का कद्दू, लाल रंग का टमाटर बैंगनी बैंगन, या सफेद मूली सब कुछ सामान्य सब्जी है और पालक मेथी,बथुआ और पत्तों वाली सब्ज़ियां हरी सब्जी कहलाती हैं।
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यह सहरा कैसा सहरा है न इस सहरा में बादल है न इस सहरा में बरखा है न इस सहरा में बोली है न इस सहरा में खोशा है न इस सहरा में सब्जा है न इस सहरा में साया है यह सहरा भूख का सहरा है यह सहरा मौत का साया है
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यह दुनिया कैसी दुनिया है यह दुनिया किस की दुनिया है इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में कहीं फूल खिले कहीं सब्जा है कहीं बादल घिर-घिर आते हैं कहीं चश्मा है कहीं दरिया है कहीं ऊँचे महल अटारियां है कहीं महफ़िल है कहीं मेला है कहीं कपड़ों के बाजार सजे यह रेशम है यह दीबा है
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सवार फिर अपने घोड़े पर चढ़ कर किसी एक जगह खड़ा हो जाता है और खरीदार बच्चों से कहता है-“ सब्जा घोड़ा लाल लगाम लगा दिये हैं सस्ते दाम! '' बाकी बच्चे, जो कि खरीददार बने हुए हैं, सवार से पूछते हैं-‘‘ सब्जा घोड़ा लाल लगाम जल्दी बोलो, कितना दाम! '' सवार फिर बच्चों से कहता हैं-‘‘ जो नर मेरा घोड़ो लेवे, सवा लाख फौरन गिन देवे! ”
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सवार फिर अपने घोड़े पर चढ़ कर किसी एक जगह खड़ा हो जाता है और खरीदार बच्चों से कहता है-“ सब्जा घोड़ा लाल लगाम लगा दिये हैं सस्ते दाम! '' बाकी बच्चे, जो कि खरीददार बने हुए हैं, सवार से पूछते हैं-‘‘ सब्जा घोड़ा लाल लगाम जल्दी बोलो, कितना दाम! '' सवार फिर बच्चों से कहता हैं-‘‘ जो नर मेरा घोड़ो लेवे, सवा लाख फौरन गिन देवे! ”
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नजर झुकाकर जरा देखते तो सही अपनी जमीन मूसलाधार वर्षा ने कैसा दलदल कर दिया है सबकुछ तुम्हारे पांवों तले-लेकिन अब खुलने लगा है आकाश और मौसम भी होने लगा है साफ जरा-जरा पर तुम दलदल में धंसे रहना अपनी नियति समझ बैठे हैं-कम्बल में गुच्छू-मुच्छू बैठे आकाश ताकते रहने से तुम आकाश के तारे तो नहीं तोड़ सकते? उठो! निकलो दलदल से बाहर और तुम्हारे इर्द-गिर्द जो सब्जा उग निकला है उसकी त रावट महसूस करो!
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4. इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में कहीं फूल खिले कहीं सब्जा है कहीं बादल घिर-घिर आते हैं कहीं चश्मा है कहीं दरिया है कहीं ऊँचे महल अटरिया हैं कहीं महफिल है, कहीं मेला है कहीं कपड़ों के बाजार सजे यह रेशम है, यह दीबा है कहीं गल्ले के अम्बार लगे सब गेहूँ धान मुहैया है कहीं दौलत के सन्दूक भरे हाँ ताम्बा, सोना, रूपा है तुम जो माँगो सो हाजिÞर है तुम जो चाहो सो मिलता है इस भूख के दुख की दुनिया में यह कैसा सुख का सपना है?