जिन्हें दिखता नहीं कि लोग मर रहे हैं कि प्राण विलुप्त हो रहा है धरती पर से अनायास वे कहते हैं कि मैं लिखता हूँ सायास एक औरत मरती है सड़क किनारे इश्तिहार में बच्चे हाँ बच्चे मरते हैं सड़क किनारे गू मूत में कीड़ों जैसे आदमी मरता है निरंतर सभ्यता में बहुत कुछ बहुत सारे लोगों को नहीं दिखता समस्वर चिल्लाते हैं वे देखो यह है सायास लिख रहा जब कहता हूँ कविता नहीं है यहाँ पूछते हैं कविता है कहाँ क्यों लिखता है कोई बार बार बुनता है शब्द जाल निरंतर प्रलाप विलाप विलाप विलाप विलाप