तो अब जब डॉ 0 सतीशराज पुष्करणा के चलते लघुकथाओं के सिद्धांत व प्रयोग में, उसकी सर्जना-समीक्षण में रुचि गहरी होती गई है तो लघुकथाओं के प्रति मेरी आद्य आशाहीन उदासीनता आसवती-प्रकाशवती अभिरुचि में तब्दील होती जा रही है।
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आपने एक ओर अस्पृश्य समझे जाने वाले हजारों लोगों को शुद्ध धर्माचार का उपदेश देकर धर्मपाल बनाया तो दूसरी ओर विषमता, व्यग्रता, तनाव और अशांति से बेचैन व्यक्ति को समता दर्शन और समीक्षण ध्यान के माध्यम से अन्तरावलोकन व आत्म निरीक्षण की प्रेरणा दी।