इस खबर में जो महत्वपूर्ण बात है वह ये कि खतरे का इंगित सिर्फ़ बहुत छोटी भाषाएँ ही नहीं बल्कि विशालतर पैमाने पर फ़ैली हुई भाषाएँ भी हैं जिनका क्षेत्र घटने की सम्भाव्यता व्यक्त की गई है / बहरहाल मैं समझता हूँ कि फ़िक़्र का सबसे बड़ा सबब ये है कि हमारी बोलियाँ बचेंगी या नहीं यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं था उस समाचार में कि उन्होंने बोलियों को (परिभाषानुसार जिनकी खुद की लिपि न हो बल्कि वे सिर्फ़ बोली जातीं हों) भाषा माना है या नहीं, अन्यथा आँकड़े और डरावने हो सकते हैं /