भयभीत लोगों के लिए सर्वसत्ताकरण (टोटलाइजेशन) और सर्वसत्तावाद (टोटेलिटेरिनिज्म) किसी चीज के लिए प्रयुक्त एक ही जैसे शब्द हैं,वे मार्क्सवाद को सर्वसत्तावादी कहकर कलंकित करते रहे हैं,जबकि सच यह है मार्क्सवाद सबको एकजुट करके रखने वाली और पूंजी संचय के रूपों को विकेन्द्रित करने वाली शक्ति है।
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सत्यजित राय की प्रासंगिकता आज उस समय फिर से बढ़ गई हे जब धार्मिक कट्टरपंथी 19वीं और प्रारंभिक 20वीं शताब्दी के समाज सुधारों की घड़ी को उलटा घुमाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वे तथ्य के स्थान पर मिथक को और लोकतंत्र के स्थान पर सर्वसत्तावाद को स्थापित कर सकें।
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सत्यजित राय की प्रासंगिकता आज उस समय फिर से बढ़ गई हे जब धार्मिक कट्टरपंथी 19वीं और प्रारंभिक 20वीं शताब्दी के समाज सुधारों की घड़ी को उलटा घुमाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वे तथ्य के स्थान पर मिथक को और लोकतंत्र के स्थान पर सर्वसत्तावाद को स्थापित कर सकें।
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सत्यजित राय की प्रासंगिकता आज उस समय फिर से बढ़ गई हे जब धार्मिक कट्टरपंथी 19 वीं और प्रारंभिक 20 वीं शताब्दी के समाज सुधारों की घड़ी को उलटा घुमाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वे तथ्य के स्थान पर मिथक को और लोकतंत्र के स्थान पर सर्वसत्तावाद को स्थापित कर सकें।
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अपने दो खंडों वाले लेखन-द ओपन सोसाइटी एंड इट्स इनिमीज में पॉपर ने “षड्यंत्र के सिद्धांत शब्द का प्रयोग फासीवाद, नाजीवाद और साम्यवाद से प्रभावित विचारधाराओं की आलोचना करने के संदर्भ में किया.[कृपया उद्धरण जोड़ें] पॉपर ने तर्क दिया कि सर्वसत्तावाद का निर्माण ”षड्यंत्र के सिद्धांतों” पर हुआ, जिसने जनजातीयतावाद, वर्चस्ववाद या नस्लवाद पर व्यामोहयुक्त परिदृश्यों द्वारा संचालित काल्पनिक योजनाओं को पैदा किया.
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न सिर्फ सत्ता के टुकड़ों पर प्रत्यक्ष रूप से पलने वाले एन. जी. ओ. इस सर्वसत्तावाद के भय से ओत-प्रोत हैं, बल्कि अपने आपको मार्क् सवाद, समाजवाद, कम्युनिज़्म से भी रैडिकल विचारों वाला मानने वाले और एक “ नये किस्म के कम्युनिज़्म ” की बात करने वाले तमाम फैशनेबुल चिन्तक भी इस सर्वसत्तावाद के डर में दुबले हुए जा रहे हैं!
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न सिर्फ सत्ता के टुकड़ों पर प्रत्यक्ष रूप से पलने वाले एन. जी. ओ. इस सर्वसत्तावाद के भय से ओत-प्रोत हैं, बल्कि अपने आपको मार्क् सवाद, समाजवाद, कम्युनिज़्म से भी रैडिकल विचारों वाला मानने वाले और एक “ नये किस्म के कम्युनिज़्म ” की बात करने वाले तमाम फैशनेबुल चिन्तक भी इस सर्वसत्तावाद के डर में दुबले हुए जा रहे हैं!
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इसलिए, उनके अनुसार, आज मानवता के पास पूँजीवादी व्यवस्था के नरभक्षीपन, मानवद्रोही चरित्र और मुनाफ़ाखोरी के बावजूद एक ही विकल्प है-पूँजीवादी जनवाद! वे समाजवाद और धार्मिक कट्टरपंथी फासीवाद और आतंकवाद को एक ही तराजू से तौलते हुए कहते हैं कि ‘ देखो! तुम्हारे पास चुनने के लिए पूँजीवादी जनवाद और विभिन्न प्रकार के (कम्युनिस्ट या धार्मिक फासीवादीद्) सर्वसत्तावाद के अलावा कुछ भी नहीं है! '