यदि पति-पत्नी में से कोई भी क्रोध, चिंता, दुःख, अविश्वास आदि किसी भी मानसिक समस्या से गुजर रहा हो, तो सहवास करना उचित नहीं है।
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हां, आप नीचे दी गई कुछ सावधानियां बरतेंगे तो बेहतर होगा:-सुबह के वक्त सहवास करना बेहतर होता है क्योंकि इस समय शरीर थका हुआ नहीं होता।
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पाराशर मुनि सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, “देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।” सत्यवती ने कहा, “मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या।
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आप एक अच्छे व्यक्ति हैं और आपको ऐसी स्त्री के साथ होना चाहिए जो आपसे और केवल आपसे प्रेम करती हो और केवल आपसे ही सहवास करना चाहती हो।
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पाराशर मुनि सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, “देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।” सत्यवती ने कहा, “मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या।
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आप एक अच्छे व्यक्ति हैं और आपको ऐसी स्त्री के साथ होना चाहिए जो आपसे और केवल आपसे प्रेम करती हो और केवल आपसे ही सहवास करना चाहती हो।
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सामान्यतः आजकल के शरीर के अनुसार शरद व बसन्त ऋतु में हफ्ता-दस दिन में एक बार व ग्रीष्म, वर्षा ऋतु में दस-पन्द्रह दिन में एक बार सहवास करना चाहिए।
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पहला कारण: 90-95 प्रतिशत मामलों में फिरंग रोग होने का कारण रोगग्रस्त व्यक्ति के साथ सहवास करना ही पाया जाता है, इसीलिए इसे मुख्यतः मैथुनजन्य रोग माना जाता है।
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गांधी जी अकेले व्यक्ति थे, जिन्होंने दृढ़ता से कहा कि अगर पति पत्नी की इच्छा के विरुद्ध सहवास करना चाहता है, तो पत्नी को न कहने का पूरा अधिकार है।
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विद्याध्ययन में व्यवधान न पैदा हो, इसलिए इस काल में स्त्री सहवास करना, नाच रंग में शामिल होना, श्रृंगार करना, बहुविध स्वाद वाला भोजन करना आदि वर्जित था।