बाकी इसका सम्पुर्ण ज्ञान ससार के महान विदुषक, ज्ञाता धाता, महान सन्त ७ ८ वर्षो से साधुत्व का पालन करने वाले महान योगी पुरुष आचार्य महाप्रज्ञ जी के विचार भी लोगो को पढने चाहीऐ तब साफ हो जाता है
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उसके धार्मिक कर्तव्यों में शास्त्रों का पढना और घर में प्रति दिन वैदिक अग्नि पद्धति का करना शामिल होंगे तीसरी अवस्था वानप्रस्थ है-साधुत्व का जीवन-एवं जो इस आश्रम में हैं वे वानप्रस्थी कहलाते हैं, “जंगल में रहने वाले”.
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सूर्य चंद्रमा का परस्पर सप्तम भावस्थ होना एवम् प्राक्रम भाव में बुद्ध-आदित्य योग के कारण स्वामी रामदेव का गेंहुआ वस्त्र एवम् साधुत्व की ओढनी के साथ प्रधानमंत्री पद की महत्वकांक्षा सहित सक्रिय राजनीति में 2013-2014 मध्य पर्दापण लगभग निश्चित है।
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गुरु के पास जो गुरुत्व है, साधु के पास जो साधुत्व है, संन्यासी के पास जो संन्यस्त है, गंगा के पास जो गंगत्व है, देवताओं के पास जो देवत्व है और भगवान के पास जो भगवत्ता है ;
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बरट्रैंड रसेल ने जहा है कि-' जीवन निश्चय ही संपूर्ण रूप से एक ऐसा दुःखांत दृश्य है, जिससे सब कोई बचना चाहते हैं, मेरा विश्वास है कि केवल कोई निष्कलंक साधु अथवा साधुत्व का ढोंग करने वाला ही इस उक्ति का प्रतिवाद कर सकता है।
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श्रीसमर्थ रामदास और शिवाजी महाराज, शाहू और बाजीराव, घोरपड़े और पटवर्धन, नाना फडनवीस, और रामशास्त्री प्रभुणे-थोड़े में कहें तो महाराष्ट्र का साधुत्व और वीरत्व, महाराष्ट्र की न्यानिष्ठा और राजनीतिज्ञता, धर्म और सदाचार, देशसेवा और विद्यासेवा, स्वतंत्रता और उदारता, सब कुछ कृष्णा के वत्सल कुटुम्ब में परवरिश पाकर फला-फूला है।
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आधुनिक हिन्दुओं का एक छोटा सा प्रतिशत संन्यास के प्रतिरूप का अनुसरण सेवानिवृत्ति के पश्चात् करता है, संसार का त्याग करके और भारत के हजारों साधू संतों के बीच विचरण करके, जिनमे से काफी नें अपने 20 या 30 के बीच साधुत्व के तरफ रुख किया था।
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आजकल वह बाबा को व्याकुल किये हुये है, बस बाबा का दुस्साहस इतना भर है कि वह योग और साधुत्व के साथ-साथ चीखने चिल्लाने का वह काम भी करने लग गये हैं, अभी तक जिसका कॉपीराइट मात्र पक्ष-विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों के पास ही रहा है? जी...
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श्रीसमर्थ रामदास और शिवाजी महाराज, शाहुजी और बाजीराव घोरपड़े और पटवर्धन, नाना फड़नवीस और रामशास्त्री प्रभुणे-थोड़े में कहें तो महाराष्ट्र का साधुत्व और वीरत्व, महाराष्ट की न्यायनिष्ठा और राजनीतिज्ञता, धर्म और सदाचार, देशसेवा और विद्यासेवा, स्वतंत्रता और उदारता, सब-कुछ कृष्णा के वत्सल-कुटुम्ब में परवरिश पाकर फला-फूला है।
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प्राचीन काल से हम सुनते आ रहे हैं की साधू या सज्जन व्यक्ति कभी भी अपना साधुत्व या फिर सज्जनता नही छोड़ते हैं चाहे हालात जो भी हो. आप समझ ही रहे होंगे की में ये क्यों बोल रहा हूँ?अब मे एक छोटी सी बात आपको बताना चाहता हूँएक बार एक साधू था अपनी ध्यान...