अध्यात्म एवं विज्ञान के बीच सामरस्य का मार्ग स्थापित करने के लिए परम्परागत धर्म की इस मान्यता को छोड़ना पड़ेगा कि यह संसार ईश्वर की इच्छा की परिणति है।
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यही कारण है कि ललित निबंधों में कल्पना और यथार्थ का सुंदर सामंजस्य है, अतीत और वर्तमान का सुंदर समन्वय है, संस्कृति और सभ्यता का सुंदर सामरस्य है।
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कामायनी तृतीय धारा की सर्वोत्कृष्ट कृति है जिसमें रहस्यमय सत्ता की प्राप्ति के आवरण में पुरुष नारी, राजा प्रजा, प्रकृति पुरुष और मानवीय वृत्तियों में सामरस्य स्थापित करने का संदेश प्रस्तुत किया गया।
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शरीर में प्राण और अपान, सूर्य और चन्द्र नामक जो बहिर्मुखी और अंतर्मुखी शक्तियाँ हैं, उनको प्राणायाम, आसन, बन्ध आदि के द्वारा सामरस्य में लाने से सहज समाधि सिद्ध होती है।
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उसके लगभग एक हज़ार वर्ष बाद हमारे आचार्य अभिनवगुप्त ने नाट्यशास्त्र पर टीका लिखी अभिनव भारती, जिसमें नवां रस शामिल किया गया-शांत रस जिसका स्थाई भाव है शम, अर्थात् आठों रसों की सामरस्य पूर्ण उपस्थिति।
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इन पाँच अध्यायों में तुलसी की रामकथा के अंतः सूत्रा, मानवीय जीवन की पक्षधरता, युग जीवन की सापेक्षता, लोक जीवन का सामरस्य तथा प्रकृति से सामंजस्य है, जिसके अंतर्गत उन्होंने तुलसी के समग्र साहित्य को विश्लेषित किया हैं।
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उसके लगभग एक हज़ार वर्ष बाद हमारे आचार्य अभिनवगुप्त ने ' नाट्यशास्त्र ' पर टीका लिखी ' अभिनव भारती ', जिसमें नवाँ रस शामिल किया गया-शांतरस, जिसका स्थाई भाव है शम, अर्थात् आठों रसों की सामरस्य पूर्ण उपस्थिति।
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अध्यात्म एवं विज्ञान के बीच सामरस्य का मार्ग स्थापित करने के लिए परम्परागत धर्म की इस मान्यता को छोड़ना पड़ेगा कि यह संसार ईश्वर की इच्छा की परिणति है वहीं दूसरी ओर विज्ञान को भी अपनी भौतिकवादी सीमाओं का अतिक्रमण करना होगा।
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अध्यात्म एवं विज्ञान के बीच सामरस्य का मार्ग स्थापित करने के लिए परम्परागत धर्म की इस मान्यता को छोड़ना पड़ेगा कि यह संसार ईश्वर की इच्छा की परिणति है वहीं दूसरी ओर विज्ञान को भी अपनी भौतिकवादी सीमाओं का अतिक्रमण करना होगा।
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आत्मतुल्यता एवं लोकमंगल की आचरणमूलक भूमिका 6. अहिंसा: जीवन का सकारात्मक मूल्य 7. अहिंसा से अनुप्राणित अर्थतंत्र: अपरिग्रह 8. वैचारिक अहिंसाः अनेकांतवाद 9. प्राणीमात्र के कल्याण तथा सामाजिक सद्भाव एवं सामरस्य की दृष्टि से दशलक्षण धर्म।