श्रीवास्तव ने हिंदी के प्रश् न को भारतीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रश् न से जोड़कर देखने की आवश् यकता को रेखांकित करते हुए कहते हैं, ” हम अपनी सामाजिक अस्मिता को पहचानें, और इस संदर्भ में भाषाई अस्मिता के सवाल पर एक बार फिर गौ़र करें.
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प्रसिद्ध लेखिका वर्जीनिया वुल्फ का यह कथन कितना सटीक है कि अगर प्रसिद्ध नाटककार सेक्सपियर की कोई बहन होती और उसकी भी मानसिक क्षमतायें सेक्सपियर के बराबर होती तो भी क्या वह एक प्रसिद्ध नाटककार बन सकती थी? इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि सेक्सपियर के काल में उसके देश में स्त्रियों की सामाजिक अस्मिता क्या थी? यहाँ सीमोन द बोउआर के इस कथन का स्वागत किया ही जाना चाहिए कि स्त्री पैदा नहीं होती बना दी जाती है।