एक ओर सरकार अदालत में शपथपत्र देकर कहती है कि ऐसी पंचायतों की कोई कानूनी वैधता नहीं है, वहीं मुख्यमंत्री फरमाते हैं कि ये पंचायतें सामाजिक तंत्र और मान्यताओं का अहम हिस्सा हैं।
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AMमेरे ख्याल से तो ७०-८०% लोगों को अंतर्जालीय सामाजिक तंत्र इस्तमाल करना ही नहीं आता है...उनका काम केवल बकवास करना का होता है और अपनी परेशानियों को सबकी परेशानी बनाने की कोशिश रहती है..फेसबुक पे तो फिर भी कम..
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हमारा सामाजिक तंत्र (हम और आप) और संवैधानिक तंत्र चार मूल बाल अधिकारों उत्तरजीविता (survival), विकास (development), सुरक्षा (protection) समान भागीदारी (participation) की रक्षा करने में सक्षम नहीं है.
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संसद में कामकाज के लगातार बाधित रहने के कारण पिछले कुछ समय में नये एवं पुराने 104 विधेयक लंबित पड़े हुए है। इसमें से कई विधेयक आम लोगों, देश की आर्थिक एवं सामाजिक तंत्र को मजबूत बनाने और सुरक्षा से जुड़े विषयों से संबंधित है।
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या फ़िर बाज़ार और ज़रूरत के हिसाब से स्त्री दिमाग और दो काम कराने वाले हाथ हमारे सामाजिक तंत्र मे फिट हो गए है, पर अस्मिता, आत्म-सम्मान, सुरक्षा और और समानता के मुद्दे आज भी मध्यकाल जमीन पर पड़े हुए है।
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आश्चर्य है कि जहाँ एक ओर देश का सम्पूर्ण सरकारी व सामाजिक तंत्र बालविवाह के दानव को समूल नष्ट करने हेतु परिश्रम कर रहे हैं वहीं उक्त मामले मे मुस्लिम पर्सनल लॉं के सहारे 15 वर्षीय बच्ची को वयस्क के रूप मे परिभाषित किया गया है।
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आरक्षण की दुहाई देने वाले भाई, क्यों अब कांटा चुभ गया मेरे भाई, जब यह सामाजिक तंत्र का हिस्सा था, किसी ने भी न आवाज उठाई, जात-पात, धर्म-मर्यादा, उंच-नीच के नाम पर, हमने अब तक खून की नदियाँ बहा ई.
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यह वर्ग नियम क़ानून नहीं मानता, … बिना किसी शर्म के … लगातार अपने से कमज़ोर का शोषण करता हुआ, अपने से कम पैसे वाले का, अपने से कम ताकत वाले का …! इस वर्ग की वजह से पूरा सामाजिक तंत्र एक असुरक्षा से त्रस्त है …
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जितना गुस्सा उन्हें लोकतंत्र की हत्या करनेवाले राजनैतिक और प्रशासनिक तंत्र पर आता है, उतने ही नाराज वे उस सामाजिक तंत्र के प्रति भी दिखाई देते हैं जिसने न तो कभी औरतों को मनुष्य होने का अधिकार दिया और न ही निम्न वर्ण के लोगों को अपने जैसा जीवित प्राणी तक माना।
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आखिर क्या वजह है कि ये मुट्ठी भर लोग हमारे अपने होते हुए भी, हमारे साथ उठते-बैठते, खाते-पीते, जीते हुए भी, भारत के सामाजिक तंत्र का हिस्सा होते हुए भी, यहाँ कि हर सुविधा का लाभ उठाते हुए भी, इस मामले में हमारे साथ नहीं होते है...