रूसो की सामाजिक संविदा ने आतंक के शासन के दौरान मूर्त रूप प्राप्त कर लिया, जिससे घबराकर अपनी राजनीतिक क्षमता में विश्वास खो बैठे बुर्जुआ वर्ग ने पहले डायरेक्टरेट की भ्रष्टता की शरण ली और फिर नेपोलियनी निरंकुशता की छत्र-छाया में पहुँच गया।
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परंतु जब संविदा के आधार पर ही समस्त राजनीति शास्त्र का विवेचन प्रारंभ हुआ तब इन दोनों प्रकार की संविदाओं का प्रयोग किया जाने लगा-सामाजिक संविदा का राज्य की उत्पत्ति के लिए तथा सरकारी संविदा का उसकी सरकार को नियमित करने के लिए।
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परंतु जब संविदा के आधार पर ही समस्त राजनीति शास्त्र का विवेचन प्रारंभ हुआ तब इन दोनों प्रकार की संविदाओं का प्रयोग किया जाने लगा-सामाजिक संविदा का राज्य की उत्पत्ति के लिए तथा सरकारी संविदा का उसकी सरकार को नियमित करने के लिए।
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यद्यपि सामाजिक संविदा का सिद्धांत अपने अंकुर रूप में सुकरात के विचारों, सोफिस्ट राजनीतिक दर्शन एवं रोमन विधान में मिलता है तथा मैनेगोल्ड ने इसे जनता के अधिकारों के सिद्धांत से जोड़ा, तथापि इसका प्रथम विस्तृत विवेचन मध्ययुगीन राजनीतिक दर्शन में सरकारी संविदा के रूप में प्राप्त होता है।
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यद्यपि सामाजिक संविदा का सिद्धांत अपने अंकुर रूप में सुकरात के विचारों, सोफिस्ट राजनीतिक दर्शन एवं रोमन विधान में मिलता है तथा मैनेगोल्ड ने इसे जनता के अधिकारों के सिद्धांत से जोड़ा, तथापि इसका प्रथम विस्तृत विवेचन मध्ययुगीन राजनीतिक दर्शन में सरकारी संविदा के रूप में प्राप्त होता है।
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यहां जूलिया क्रिस्तेवा के ‘ वुमेन्स टाइम ' में प्रकाशित चर्चित आलेख का यह हवाला भी अप्रासंगिक नहीं होगा जिसमें समाज के लिए एक नये नीतिशास्त्र की मांग करती हुई क्रिस्तेवा स्त्रियों को एक कड़ी चेतावनी देती हैं-‘‘ अगर वे अपनी एन्टिटी (सत्ता) बचाने के लिए सामाजिक संविदा को नष्ट करती हैं तो न केवल अपने वैयक्तिक संतुलन बल्कि सामाजिक संतुलन को भी संकट में डाल देती है ।