ये हैं-राष्ट्रीय साहित्य (National Literature), विश्व साहित्य (World Literature) और सामान्य साहित्य (General Literature). प्रो. इंद्रनाथ चौधुरी ने ‘ तुलनात्मक साहित्य की भूमिका ' में इन अवधारणाओं को स्पष्ट करते हुए तुलनात्मक साहित्य और सामान्य साहित्य के संबंध पर सम्यक प्रकाश डाला है.
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ये हैं-राष्ट्रीय साहित्य (National Literature), विश्व साहित्य (World Literature) और सामान्य साहित्य (General Literature). प्रो. इंद्रनाथ चौधुरी ने ‘ तुलनात्मक साहित्य की भूमिका ' में इन अवधारणाओं को स्पष्ट करते हुए तुलनात्मक साहित्य और सामान्य साहित्य के संबंध पर सम्यक प्रकाश डाला है.
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लेकिन मज़दूर इस कार्य में और अधिक सफल हों इसके लिए सामान्य तौर पर मज़दूरों की चेतना के स्तर को बढ़ाने के हरसम्भव प्रयास किये जाने चाहिए ; यह ज़रूरी है कि मज़दूर खुद को ” मज़दूर साहित्य ” की कृत्रिम सीमाओं में बाँधकर न रखें बल्कि वे सामान्य साहित्य में उत्तरोत्तर महारत हासिल करते जायेँ।
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अक्सर लोग कहते हुए मिल जाते है-अब तो झूठ और बेमानी के बिना गुजारा नही / जब की हमने छोटी उमर से सिखा है सत्य की ही अंत पन्त विजय होती है /और तमाम साहित्य जो चाहे धरम के रूप में हो या सामान्य साहित्य हो सभी जगह यही देखा की जित सत्य की ही होती है परन्तु
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अक्सर लोग कहते हुए मिल जाते है-अब तो झूठ और बेमानी के बिना गुजारा नही / जब की हमने छोटी उमर से सिखा है सत्य की ही अंत पन्त विजय होती है /और तमाम साहित्य जो चाहे धरम के रूप में हो या सामान्य साहित्य हो सभी जगह यही देखा की जित सत्य की ही होती है परन्तु...
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ऐसा नहीं है कि सामान्य साहित्य बाहर की दुनिया को बदलने की बात नहीं करता और विज्ञान कथा अन्दर से बदलने की बात नहीं करता, दोनों तरह के साहित्य अन्दर बाहर दोनों को बदलने की बात करते हैं, किन्तु मुख्यतया सामान्य साहित्य मनुष्य के अन्दर को और विज्ञान कथा बाहर को अपनी विशिष्ट शैली में बदलने की बात करते हैं।
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ऐसा नहीं है कि सामान्य साहित्य बाहर की दुनिया को बदलने की बात नहीं करता और विज्ञान कथा अन्दर से बदलने की बात नहीं करता, दोनों तरह के साहित्य अन्दर बाहर दोनों को बदलने की बात करते हैं, किन्तु मुख्यतया सामान्य साहित्य मनुष्य के अन्दर को और विज्ञान कथा बाहर को अपनी विशिष्ट शैली में बदलने की बात करते हैं।
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विज्ञान तथा तकनीकी शाखाओं तक के सीमित क्षेत्र में संस्कृत धातुओं पर आधारित शब्द निर्माण हेतु यदि वैज्ञानिक एवं अभियंताओं को संस्कृत व्याकरण के मौलिक नियमों से अवगत करा दिया जाय, जिसके लिए कोई 30 घंटे का पाठ्यक्रम पर्याप्त होगा, तो वे निर्मित शब्दावली आसानी से समझ सकते हैं और यदि वे किसी भी एक भारतीय भाषा में सामान्य साहित्य के स्तर तक का ज्ञान रखते हों तो स्वयं शब्द निर्माण भी कर सकते हैं ।
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तुकांत-अतुकांत, गीत, ग़ज़ल, छंद सभी को प्रश्रय व बढ़ावा दे रहे हैं | नवीन विधाओं व प्रयोगों को अस्तित्व में ला रहे हैं | उन्हें किसी से भी विरोध, लगाव या परहेज़ नहीं है और साहित्य के हितार्थ अपने कर्म में लगे हुए हैं | साहित्य जन जन तक कैसे पहुंचे व जन सामान्य साहित्य तक कैसे पहुंचे | आदर्श व सत्साहित्य का निर्माण व प्रसार कैसे हो एवं साहित्य समाज का आदर्श कैसे बने? ये सब यक्ष प्रश्न तो हैं ही |