केवल २ बिन्दु रखती हूँ-भात के संविधान के अनुसार देश की भाषा हिन्दी है और उसमें सामासिकता के निर्वाह के लिए शब्दों की मिलावट करने का नियम यह है कि ७०प्रतिशत शब्द संस्कृत से लिए जाएँ व शेष ३० प्रतिशत अन्य भारतीय भाषाओं व बोलियों से।
42.
इसी प्रकार भारतीयता को सामासिकता से जोड़ते हुए डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय कहते हैं-“ भारत के भौगोलिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक चरित्र में सामासिकता है जिसके केंद्र में है सहिष्णुता जिसे नरेश मेहता ‘ वैष्णवता ' कहते हैं. वैष्णवता का मूल करुणा है.
43.
इसी प्रकार भारतीयता को सामासिकता से जोड़ते हुए डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय कहते हैं-“ भारत के भौगोलिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक चरित्र में सामासिकता है जिसके केंद्र में है सहिष्णुता जिसे नरेश मेहता ‘ वैष्णवता ' कहते हैं. वैष्णवता का मूल करुणा है.
44.
ने अपना स्थान बनाया उन्होंने यों तो समस्त विश्व को एक बाज़ार में रूपान्तरित कर दिया किन्तु भारतीय समाज पर इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव इसलिए हुआ क्योंकि इस देश का मुख्य आधार {इसका पारिवारिक ताना-बाना व संबन्धों के प्रति एक निष्ठ समर्पण भाव (सामूहिकता व सामासिकता)} ही दरक गया।
45.
केवल २ बिन्दु रखती हूँ-भात के संविधान के अनुसार देश की भाषा हिन्दी है और उसमें सामासिकता के निर्वाह के लिए शब्दों की मिलावट करने का नियम यह है कि ७ ० प्रतिशत शब्द संस्कृत से लिए जाएँ व शेष ३ ० प्रतिशत अन्य भारतीय भाषाओं व बोलियों से।
46.
संघ परिवार में शामिल दलों और संगठनों की तो बात ही क्या, अनेक मध्यमार्गी पार्टियां जो बुनियादी तौर पर धर्मनिरपेक्ष आधार पर बनी हैं (जैसे समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, तेलुगु देशम, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल पार्टी) वे भी दबाव में आकर धर्मनिरपेक्षता और सामासिकता के विमर्श से और अधिक दूर खिसकने लगेंगी।
47.
सहस्रों वर्षों की कालावधि में उत्पन्न, भिन्न-भिन्न शील, स्वभाव तथा इतिवृत्त वाले विविध नरेशों का वर्णन होने के कारण इसकी शैली में सतत गत्वरता और एक प्रकार की सामासिकता है, अत: अन्य महाकाव्यों की भांति शृंगार, वीर, हास आदि रसों का तथा आलम्बन-उद्दीपन के रूप में सोद्देश्य किये गये प्राकृतिक वर्णनों का वैसा चमत्कार तो नहीं मिलता।
48.
समाज में ‘ आधुनिकता ' के प्रवेश के साथ जिन नवीन मूल्यों (?) ने अपना स्थान बनाया उन्होंने यों तो समस्त विश्व को एक बाज़ार में रूपान्तरित कर दिया किन्तु भारतीय समाज पर इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव इसलिए हुआ क्योंकि इस देश का मुख्य आधार {इसका पारिवारिक ताना-बाना व संबन्धों के प्रति एक निष्ठ समर्पण भाव (सामूहिकता व सामासिकता)} ही दरक गया।
49.
कविता व पाठक का सम्बन्ध, पठनीयता, साधारणीकरण, मुक्त छंद, शिल्प के स्तर पर रचनाकार की निजता, काव्यशिल्प, लोक, काव्यप्रेरणा, निरन्तरता, तुक अन्तर्विरोध, सामासिकता, अर्थगाम्भीर्य, आलोचना की उपादेयता, कविता की आन्तरिक शक्ति, साहित्य में सत्य की प्रतिष्ठा, स्वाभावोक्ति, जनवादी प्रतिबद्धता, काव्यऊर्जा, सौन्दर्यबोध, समकालीनता का छद्म आदि जैसे शताधिक प्रश्नों पर गद्य में केदार के विमर्श को सामने रखा.