सार्थवाह हमारा कर्तव्य आपकी रक्षा करना है और वह हम यहाँ पर शत्रु को रोक कर बेहतर कर सकते है. ” अतिरथ ने कहा.
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राजन्यों में विभिन्न प्रकार के व्यापारी, सैनिक, शिल्पकार यथा कुंभकार, बढ़ई, जुलाहे, तैलिक, सार्थवाह आदि सम्मिलित थे, जो अपने श्रम-कौशल के बल पर जीविकोपार्जन करते थे.
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मार्शल का तक्षशिला पर लिखा ग्रथ पढ़ा, डॉ मोतीचंद्र का ग्रंथ ' प्राचीन वेषभूषा ' पढ़ा और भगवतशरण उपाध्याय का ' सार्थवाह ' ग्रंथ पढ़ा.
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स्पष्ट है कि सार्थवाह का अर्थ हुआ, जो समूह को अपने साथ ले जाए वह है सार्थवाह अर्थात् दलपति, मीरे कारवाँ या व्यापारी दल का प्रमुख।
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स्पष्ट है कि सार्थवाह का अर्थ हुआ, जो समूह को अपने साथ ले जाए वह है सार्थवाह अर्थात् दलपति, मीरे कारवाँ या व्यापारी दल का प्रमुख।
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उत्तर:-सिंह, घोड़ा, बैल और हाथी 86-गुप्तकालीन थल मार्गो का विशद वर्णन ' सार्थवाह ' नामक पुस्तक में किया गया है, इसके लेखक कौन है।
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दिव्यावदान ३ ८ में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि वाराणसी में ब्रह्मदत्त के राज्यकाल में सुप्रिय नामक सार्थवाह (महासार्थवाह) समुद्री मार्ग से रत्नद्वीप गया और वहां से वाराणसी लौटा।
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“मैं भी इससे सहमत हूँ. सार्थवाह हमारा कर्तव्य आपकी रक्षा करना है और वह हम यहाँ पर शत्रु को रोक कर बेहतर कर सकते है.”अतिरथ ने कहा. नगर सेनापति भी सहमत था.
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सार्थवाह धनगुप्त ने अपने कारवाँ पर नजर डाली. टीले की ऊंचाई से वह अपनी बैलगाडियों की पंक्ति का अंतिम छोर अच्छी तरह से देख पा रहा था.वह वर्षों से अपने कारवाँ के साथ व्यापार करता आ रहा था.पर इस मार्ग से कई बरसों बाद गुजर रहा था.आज का मार्ग कुछ अधिक ही दु
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सार्थवाह धनगुप्त ने अपने कारवाँ पर नजर डाली. टीले की ऊंचाई से वह अपनी बैलगाडियों की पंक्ति का अंतिम छोर अच्छी तरह से देख पा रहा था.वह वर्षों से अपने कारवाँ के साथ व्यापार करता आ रहा था.पर इस मार्ग से कई बरसों बाद गुजर रहा था.आज का मार्ग कुछ अधिक ही दु...