हर आदमी अपने जीवन को अधिकतम सुखी बनाना चाहता है तो यदि चिकित्सा शास्त्र पढ़ कर मैं डॉक्टर बन गया तो मैं ऐसा नहीं करूंगा ऐसा तो हरगिज नहीं है, हमारे परिवार को भी वो सब चाहिए जो दूसरों के पास है पर्याप्त समय, धन, ऐश्वर्य आदि।
42.
सत्कर्म द्वारा लोगों को सुखी बनाना अच्छी बात है, लेकिन उससे कोई अपेक्षा नहीं होनी चाहिए। यही कर्म का मर्म है। स्वामी विवेकानंद के सार्धशती वर्ष में उनके स्मृति दिवस पर उनका ही चिंतन.. भिन्न परिस्थितियों में कर्तव्य भिन्न-भिन्न हो जाते हैं। जो कार्य एक अवस्था में निःस्वार्थ होता है, वही
43.
सत्कर्म द्वारा लोगों को सुखी बनाना अच्छी बात है, लेकिन उससे कोई अपेक्षा नहीं होनी चाहिए। यही कर्म का मर्म है। स्वामी विवेकानंद के सार्धशती वर्ष में उनके स्मृति दिवस (4 जुलाई) पर उनका ही चिंतन.. भिन्न परिस्थितियों में कर्तव्य भिन्न-भिन्न हो जाते हैं। जो कार्य एक अवस्था में निःस्वार्थ होत
44.
घास-फूस से छाई एक छोटी-सी कुटिया, लेकिन अच्छा-सा बिस्तर, अच्छा भोजन, ताजा दूध और मक्खन, मेरी खिड़की के सामने फूल और मेरे दरवाजे पर कुछ खूबसूरत पेड़ ; और अगर ईश्वर मुझे पूर्णतः सुखी बनाना चाहता है, तो मेरे छह-सात दुशमनों को उन पेड़ों से लटकते हुए देखने का आनंद।