सुमेरु समान ही ऊँचाई लिये यह ब्लॉग केन्द्र रत्न की तरह है और अपने पाठकों के लिये गंगा सुमिरनी की तरह-एक ऐसा ब्लॉग जिसमें ब्लॉगर की आत्मा इस तरह से व्याप्त है कि ब्लॉग और ब्लॉगर का विभेद कर कुछ कह पाना अत्यंत कठिन हो जाता है।
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सुमेरु समान ही ऊँचाई लिये यह ब्लॉग केन्द्र रत्न की तरह है और अपने पाठकों के लिये गंगा सुमिरनी की तरह-एक ऐसा ब्लॉग जिसमें ब्लॉगर की आत्मा इस तरह से व्याप्त है कि ब्लॉग और ब्लॉगर का विभेद कर कुछ कह पाना अत्यंत कठिन हो जाता है।
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मोड़ा-मोड़ी को तीसरे पहर भूख लगती है न! ये गैस की नीली लपट पर सिंकी रोटियाँ और कुकर में गली दाल-सब्ज़ी, खा-खा कर जी ऊब गया है नौमी का मन करता है सुमिरनी के बोरे पर जा बैठे और चूल्हे की मंदी आँच पर सिंकती रोटियाँ और बटलोई की दाल खा कर तृप्त हो जाये ।
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हर तरह से बाधा बने रहते है ये बच्चे! माँएँ सचमुच कल्चर्ड हैं! अरे, मैं भी कहाँ की लेकर बैठ गई नौमी फ़लतू बातों को दिमाग़ से झटक देना चाहती है, ये परेशानियाँ तो जग-विदित हैं! ** छोटे को दूध पिला, ज़मीन पर बोरा बिछा कर बैठाल देती है सुमिरनी, और अपने काम में लग जाती है ।