| 41. | दुनियाभर में सुषिर वाद्यों की प्राचीन परम्परा रही है और अक्सर सुषिर वाद्यों से बेहद कर्णप्रिय और मधुर ध्वनि निकलती है।
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| 42. | दुनियाभर में सुषिर वाद्यों की प्राचीन परम्परा रही है और अक्सर सुषिर वाद्यों से बेहद कर्णप्रिय और मधुर ध्वनि निकलती है।
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| 43. | नीलगिरी की लकडि़यां आमतौर पर डेगरिडू बनाने के काम आती है, यह एक ऑस्ट्रेलियाई एबोरिजिना आदिवासियों का पारंपरिक सुषिर वाद्य है.
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| 44. | अवनद्ध वाद्यों में दुदुंभि, गर्गर इत्यादि का, घनवाद्यों में आघाट या आघाटि और सुषिर वाद्यों में बाकुर, नाडी, तूणव, शंख इत्यादि का उल्लेख है।
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| 45. | अवनद्ध वाद्यों में दुदुंभि, गर्गर इत्यादि का, घनवाद्यों में आघाट या आघाटि और सुषिर वाद्यों में बाकुर, नाडी, तूणव, शंख इत्यादि का उल्लेख है।
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| 46. | बाँसुरी अत्यंत लोकप्रिय सुषिर वाद्य यंत्र माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक बांस से बनायी जाती है, इसलिये लोग उसे बांस बांसुरी भी कहते हैं।
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| 47. | सामान्य तौर पर देखने में बाँस की, खोखली, बेलनाकार आकृति होती है, किन्तु इस सुषिर वाद्य की वादन तकनीक सरल नहीं है।
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| 48. | भारतीय संगीत के क्षेत्र में बाँसुरी के अनेक साधक हुए हैं, जिन्होने इस साधारण से दिखने वाले सुषिर वाद्य को असाधारन गरिमा प्रदान की है।
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| 49. | ब्रज क्षेत्र की आल्हा-गायकी में सारंगी के लोक-स्वरूप का प्रयोग किया जाता है, जबकि अवध क्षेत्र के आल्हा-गायन में सुषिर वाद्य का प्रयोग भी किया जाता है।
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| 50. | बाँसुरी अत्यंत लोकप्रिय सुषिर वाद्य यंत्र माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक बांस से बनायी जाती है, इसलिये लोग उसे बांस बांसुरी भी कहते हैं।
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