बाट में घाट तो आएंगे, जहां सुस्ताना है, सांस लेनी है, मन को थोड़ा और थिर करना है, पर रुकना नहीं है।
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किसी गांव के नुक्कड पर बैठ चाय की चुस्कियां लेना और खेत खलिहानों के बीच जिन्दगी के रास्ते तलाशते हुए कहीं दूर किसी वृक्ष तले ठहर सुस्ताना..
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(एक चित्र खींचा जा रहा है, कहिये तो भूमिका बनायी जा रही) आम इमली महुआ की छाया में जेठ/बैसाख की दोपहर के बीच थोड़ा सुस्ताना होता है।
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किसी गांव के नुक्कड पर बैठ चाय की चुस्कियां लेना और खेत खलिहानों के बीच जिन्दगी के रास्ते तलाशते हुए कहीं दूर किसी वृक्ष तले ठहर सुस्ताना..
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किताबों को गोदी में लेकर बैठना, सीने पर रख कर दो पल के लिये सुस्ताना, हाथों में भरकर स्कूल-कॉलेज तक जाना कभी न भुलाने वाले लम्हे हैं।
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काश! कि संभव हो आपका सुस्ताना अपने आप को जान जाना समय को अपनी उन्जरी में भर पाना! काश कि संभव हो आपकी सोच का ये फ़साना!
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प्रसिद्द कथाकार कमलेश्वर कहते हैं ” शहरयार को पढता हूँ तो रुकना पड़ता है...पर यह रूकावट नहीं, बात के पडाव हैं, जहाँ सोच को सुस्ताना पड़ता है-सोचने के लिए.
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अरे! इतना सुस्ताना ठीक नहीं जल्दी से आगे की कथा कहिये वरना कन्फ्यूजन बढ़ता ही जायगा हमारा भी आपके साथ साथ |वैसे ही इतने भगवान विदा ले रहे है आजकल?
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अरे! इतना सुस्ताना ठीक नहीं जल्दी से आगे की कथा कहिये वरना कन्फ्यूजन बढ़ता ही जायगा हमारा भी आपके साथ साथ | वैसे ही इतने भगवान विदा ले रहे है आजकल?
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अरे! इतना सुस्ताना ठीक नहीं जल्दी से आगे की कथा कहिये वरना कन्फ्यूजन बढ़ता ही जायगा हमारा भी आपके साथ साथ | वैसे ही इतने भगवान विदा ले रहे है आजकल?