ऐसे कैसे हो गये हैं हम लोग जो अपनी सीमा में किसी आगंतुक के लिए कोई भी जगह नहीं दे पाते? हर इंसान के भीतर महाभारत ' का दुर्योधन नायक बना हुआ है जो वनवासी पांडवों को सूई की नोक पर टिक जाए उतनी सी भी जगह देने से साफ़ इनकार कर देता है!
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क्या आप जानते हैं की एक अमीबा जो लाखों की संख्या में एक सूई की नोक पर आ सकते हैं उनमें एक लाख परमाणु होते, इतनें बारीक़ जीव को किसनें बनाया होगा? आकाश से हर पल अनगिनत भार रहित कण नयूत्रिनों जिनको सन्देश बाहक कण कहते हैं हमारे जिस्म में प्रवेश करते हैं और फ़िर बाहर निकल आते हैं ।
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उन्होंने घोषणा कर रखी थी कि आरएसएस के भगवा ध्वज को फहराने के लिए वह भारत में एक इंच भी भूमि (सूई की नोक बराबर?) नहीं देंगे. नेहरू के विश्वस्त दोस्त और उनके कैबिनेट में मंत्री किदवई को नानाजी को अपने घर में रखने और भूमिगत होकर आरएसएस की गतिविधियां चलाने देने में कोई आपत्ति नहीं थी.
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रामायण में राम और भरत के माध्यम से बताया गया कि संबंध निर्वाह में स्वार्थपरता का कोई स्थान नहीं है और ऐसे में सर्वत्र मंगल ही मंगल होता है, त्याग की भावना के आधार पर ही सुदृढ़ समाज की रचना संभव है, जबकि महाभारत में दुर्योधन ने स्वार्थान्धता के कारण सूई की नोक के बराबर जमीन भी पांडवों को न देने की घोषणा करके जिस दुस्साहस का परिचय दिया, उसकी परिणति संपूर्ण भारत के महाविनाश से हुई।
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रामायण में राम और भरत के माध्यम से बताया गया कि संबंध निर्वाह में स्वार्थपरता का कोई स्थान नहीं है और ऐसे में सर्वत्र मंगल ही मंगल होता है, त्याग की भावना के आधार पर ही सुदृढ़ समाज की रचना संभव है, जबकि महाभारत में दुर्योधन ने स्वार्थान्धता के कारण सूई की नोक के बराबर जमीन भी पांडवों को न देने की घोषणा करके जिस दुस्साहस का परिचय दिया, उसकी परिणति संपूर्ण भारत के महाविनाश से हुई।