भावार्थ: इन्द्रियों से अतीत, केवल शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा ग्रहण करने योग्य जो अनन्त आनन्द है, उसको जिस अवस्था में अनुभव करता है, और जिस अवस्था में स्थित यह योगी
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अंततः श्रीकृष्ण कह उठते हैं कि इतना जो कुछ बताया है, उसका सार यही है कि उसे ध्यान योगी बन अपने को सूक्ष्म बुद्धि संपन्न, पवित्रतम, ऊर्जावान बनाना चाहिए।
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अपनी तपो महिमा के प्रति परशुराम के विश्वास तथा उसकी सूक्ष्म बुद्धि पर जमदग्नि प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया-‘‘ परशुराम, तुम कारण जन्मधारी हो, सदा चिरंजीवी बने रहोगे।
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भावार्थ: योग के अभ्यास से निरुद्ध चित्त जिस अवस्था में उपराम हो जाता है और जिस अवस्था में परमात्मा के ध्यान से शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा परमात्मा को साक्षात करता हुआ
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उनका दिमाग कौंध गया! क्यों नहीं राजपुत्र का आनन फानन विवाह रचाकर उनकी पत्नी का राज्याभिषेक किया जाय! राजदरबार में राजा की इस सूक्ष्म बुद्धि की जयजयकार हुई! रास्ता निकल आया।
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पंडित जी ने कहा कि विद्वानों का कर्तव्य है कि वे अखण्ड व्रती प्रभु के न्याय-नियमों को अपनी सूक्ष्म बुद्धि से जानकर सामान्य जनों को हितकारक उपदेश से पवित्र आचरण का परामर्श सदा देते रहें।
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उदयनाचार्य बौद्ध दर्शन का निर्णायक रूप में खंडन नहीं कर पाये या नहीं, इस बारे में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उनका बौद्ध दर्शन का खंडन सूक्ष्म बुद्धि तथा वाद कौशल का एक नमूना है।
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“इन्दि्रयों से अतीत, केवल शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा, ग्रहण करने योग्य जो अनन्त आनन्द है, उसको जिस अवस्था में अनुभव करता है और जिस अवस्था में स्थित हुआ यह योगी भगवत स्वरूप से नहीं चलायमान होता है”।
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कितनी ही सूक्ष्म बुद्धि हो, और कितना ही प्रगाढ़ चिंतन हो, और कितना ही तर्कनिष्ठ व्यक्तित्व हो, तो भी परमात्मा को मनुष्य प्राप्त नहीं कर सकता, जो बुरे आचरणों से निवृत्त नहीं हुआ है।
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भावार्थ: योग के अभ्यास से निरुद्ध चित्त जिस अवस्था में उपराम हो जाता है और जिस अवस्था में परमात्मा के ध्यान से शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा परमात्मा को साक्षात करता हुआ सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही सन्तुष्ट रहता है॥20॥