स्त्री-पुरुष अनुपात के मामले में बस्तर, दंतेवाड़ा, कांकेर जैसे नक्सली गढ़ में देश और राज्य के औसत से कहीं आगे है.
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ऐसा क्यों होता है? जहां स्त्री-पुरुष अनुपात समान या उचित है, वहां ऐसा होने की वजह होती है महिलाओं से समानता का व्यवहार होना।
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हमारे समाज के लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात समाजशास्त्रियों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
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हमारे समाज के लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात समाजशास्त्रियों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
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लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और खतरनाक गति से लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात समाजशास्ति्रयों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
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वाह। परिवार नियोजन वाले दुखी हो जायेंगे इसे बांचकर लेकिन नाराज हो जायेंगे इसे बांचकर लेकिन जब वे देखेंगे स्त्री-पुरुष अनुपात सुधर रहा है तो शायद खुश भी जायें।
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ताजा जनगणना के मुताबिक बीते एक दशक में प्रदेश में स्त्री-पुरुष अनुपात तो बढ़ा है लेकिन 0 से छह साल तक के बच्चों का लिंगानुपात खासा घट गया है।
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प्रो. नंदिनी सुंदर, सोश्यॉलजी-डीयू उनकी मुहिम के पीछे धार्मिक कारण हमारे देश में स्त्री-पुरुष अनुपात में काफी असमानता है और इस मुद्दे को लेकर समाजशास्त्री काफी चिंतित भी हैं।
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स्त्री-पुरुष अनुपात जो भी रहा हो पति-पत्नी अनुपात अजीब हो चूका था! श्रीकृष्ण की १ ६ ०० ८ पत्नियों की तुलना में द्रोपदी ५ पतियों की पत्नी ….
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शहरी क्षेत्रों में स्त्री-पुरुष अनुपात 870 से बढ़कर 910 हो गया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह 962 से गिरकर 961 हो गया है, जो चिंता का विषय है।