टिकाऊ विकास या ' स्वपोषी विकास' (Sustainable Development), विकास की वह अवधारणा है जिसमें विकास की नीतियां बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मानव की न केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति हो, वरन् अनन्त काल मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित हो सके।
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स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है जैसा कि ‘ऊर्जा के स्रोत ' नामक पिछले आलेख में हमने जाना था कि जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है, तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्रास हो जाता है।
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स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है जैसा कि ' ऊर्जा के स्रोत' नामक पिछले आलेख में हमने जाना था कि जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है, तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्रास हो जाता है।
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स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है जैसा कि ‘ ऊर्जा के स्रोत ' नामक पिछले आलेख में हमने जाना था कि जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है, तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्रास हो जाता है।
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समग्र विकास ‘ सामाजिक विकास ' और सबसे नई ‘ स्वपोषी विकास ' की अवधारणाओं को विस्तार से समझाते हुए उन्होने बताया कि अब विकास एक केंद्रिकृत अवधारणा नहीं रह गई है बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर यह माना गया है कि हाशिए पर स्थित लोगों को विकास की धारा में जोड़ माना ही वास्तविक विकास है।
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ये तत्व स्वपोषी जीवों, जिनमें भोजन निर्माण की क्षमता होती है, द्वारा कार्बनिक यौगिकों के साथ समाविष्ट कर दिए जाते हैं जहां से खाद्य जाल के विभिन्न उपभोक्ताओं में से गुजरते हुए पुनः सैप्रोफाइट यानी मृतजीवी (वे जीव जो मृत या सड़े-गले पदार्थों से अपना पोषण प्राप्त करते हैं) द्वारा अकार्बनिक रसायनों के रूप में पुनर्चक्रित कर दिए जाते हैं।