कई दिनों के बाद स्वप्नमय बाबू जब एक शाम घोष दा के घर पहुंचे किसी बच्चे का हाथ पकड़े जैसा कि तकरीबन हर शाम को करते थे वे− तो घोष दा सिर मुंह लपेटे लेटे हैं।
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घर्र घर्र करते हुए बाइक पर बैठने के पहले प्रस्ताव को ही ठुकरा दिया था स्वप्नमय बाबू ने, जब हर पहली तारीख को पेंशन का थोड़ा सा रुपया निकालने वह बैंक जाया करते थे, पूरे समारोहपूर्वक।
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भाभी के जोर से रोने की आवाज आयी तो स्वप्नमय बाबू ने उछल कर ढूंढ कर (शाम हो रही थी और कम दिख रहा था उन्हें) गला पकड़ लिया पत्नी का − ÷÷साली! टेंटुए दबा देंगे।
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कई दिनों के बाद स्वप्नमय बाबू जब एक शाम घोष दा के घर पहुँचे किसी बच्चे का हाथ पकड़े जैसा कि तकरीबन हर शाम को करते थे वे-तो घोष दा सिर मुँह लपेटे लेटे हैं।
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हां जी! तो घर तो नये न होगा।” इस बार तो पड़ोस की महिलाओं को दी गयी ये गर्वमिश्रित सूचनाएं अपने कमरे में धीमी आवाज में रेडियो सुन रहे उनींदे स्वप्नमय बाबू तक भी पहुंच रही थीं।
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घर्र-घर्र करते हुए बाइक पर बैठने के पहले प्रस्ताव को ही ठुकरा दिया था स्वप्नमय बाबू ने, जब हर पहली तारीख को पेंशन का थोड़ा सा रुपया निकालने वह बैंक जाया करते थे, पूरे समारोहपूर्वक।
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कल को छोटू कहीं इंजीनियरिंग में कम्पीट कर गया तो औकात है ÷खटाखट बाबू ' की उसको पढ़ाने की?” ऐसे ही पलों में स्वप्नमय बाबू इतना अकेलापन महसूस करने लगते कि बतियाने लगते थे रेडियो से और टॉकिंग क्लॉक से−
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प्रसन्न थीं पत्नी-घर में सामानों की तादाद बढ़ती देख कर-टी. वी. का गुणगान तो कर ही चुकीं-फ्रिज भी आ चुका था और यह स्वप्नमय बाबू को उससे टकराने पर मालूम हुआ।
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लेकिन अपने रचनात्मक अभियानों को लेकर दोनों द्वारा अर्जित आत्मविश्वास से वह जगह-वह कामन स्पेस निर्मित होती है जहाँ खड़े होकर हम कविता की चुनौतियों को लेकर एक निर्णायक, समावेशी और स्वप्नमय संवाद का आरम्भ कर सकते हैं।
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भाभी के जोर से रोने की आवाज आई तो स्वप्नमय बाबू ने उछल कर ढूँढ़ कर (शाम हो रही थी और कम दिख रहा था उन्हें) गला पकड़ लिया पत्नी का-' साली! टेंटुए दबा देंगे।