जैवचिकित्सा तथा स्वभावजन्य शोध के विषय पर राष्ट्रीय मानव रक्षा आयोग की स्थापना प्रारंभ में मानव विषयों को लेकर होने वाले जैवचिकित्सा तथा स्वभावजन्य शोध के आधारभूत सिद्धान्तों की पहचान करने के लिए की गई थी.
42.
जैवचिकित्सा तथा स्वभावजन्य शोध के विषय पर राष्ट्रीय मानव रक्षा आयोग की स्थापना प्रारंभ में मानव विषयों को लेकर होने वाले जैवचिकित्सा तथा स्वभावजन्य शोध के आधारभूत सिद्धान्तों की पहचान करने के लिए की गई थी.
43.
जन्म के उपरांत यदि अनुकूल वातावरण मिल जाता है तो मनुष्य अपने स्वभावजन्य विशेषताओं का पूर्ण विकास कर ध्येय की प्राप्ति कर लेता है और प्रतिकूल वातावरण में वह पथ-भ्रष्ट होकर ध्येय-प्राप्ति से बिछुड़ जाता है ।
44.
नैदानिक मनोवैज्ञानिक अब मनोचिकित्सा के विशेषज्ञ माने जाते हैं, तथा वे सामान्यतः चार प्रमुख प्राथमिक सैद्धांतिक अभिमुखन-मनोगतिकी, मानविकी, व्यवहार उपचार / संज्ञानात्मक स्वभावजन्य तथा प्रणालियों या पारिवारिक उपचारों में प्रशिक्षित होते हैं.
45.
संज्ञानात्मक स्वभावजन्य-यह सामान्यतया अनुकूलन में कठिनाई पैदा करने वाले संज्ञानों, मूल्याङ्कन, विनाशकारी नकारात्मक भावनाओं और समस्यात्मक दुश्क्रियाशील व्यवहार को प्रभावित करने का उद्देश्य रखने वाले भावनाओं और प्रतिक्रिया की खोज करती है.
46.
अच्छी हो या बुरी, यह चाहत आदमी के स्वभाव की नैसर्गिक जरूरत हैं ; जुड़ना और जोड़ना हमारे लिए एक स्वभावजन्य प्रक्रिया है, सृष्टि की संरचना का आधार तक यही प्रकृति और पुरुष का आपसी संबंध है।
47.
अंतिम क्षण में दुर्बलता व्यक्त करने के लिए, परमात्मा ने उसे उपालंभ देते हुए, आत्मा का अमरत्व, नाशवंत शरीर की मृत्यु, जीवन की तमाम परिस्थिति में समान भाव माने कि स्थितप्रज्ञता, स्वभावजन्य कर्म करना जरुरी ईत्यादि कई बातें समझाई ।
48.
समाज तो साधारतः किसी भी नेता के बाह्य व्यक्तित्व को देख कर ही प्रभावित होता है, उसकी स्वभावजन्य विशेषतायों और त्रुटियों को, आंतरिक कमजोरियों को और विशेषताओं को न तो वह देख सकता है और न ही समझ पाता है ।
49.
इसी स्वभावजन्य ललक में ओम थानवी भी बह गए और पकड़ गए! लेकिन पकड़े जाने के बा-वजूद उनकी निष्ठा पर कोई आंच नहीं आएगी बल्कि इससे उनकी निष्ठा पर से संदिग्धता का धूमिल आवरण ही हटेगा और वे अपने स्वामियों के वफादार सेवकों मे सम्मानजनक स्थान पा जाएंगे!
50.
कहता रहे! मुझे तो अशास्त्रीय / अमौलिक होकर भी पसंद आया! यहां तक कि मेरे अपने स्वभावजन्य आग्रह से इतर होकर भी पसंद आया! सच कहूं तो ये शब्द, आलाप, संगीत, नृत्य निर्देशन, भंगिमाएं, सौंदर्य अपने टुकड़ा टुकड़ा अस्तित्व में औसत से ऊपर नहीं!...और मुमकिन है कि ये स्वयं भी किसी दूसरे टुकड़े की अनुकृति मात्र हों तो फिर मौलिकता का दावा भी नहीं बनता! इसके बावजूद इन सारे के सारे औसत टुकड़ों के एकजुट होते ही मैं सम्मोहित कैसे हुआ?