शामिल होते हैं और स्वास्थ्य की चिंता किये बिना और चर्च की अस्वीकृति के बावजूद, तपस्या के प्रतीक के रूप में स्वयं अपने आप को कोड़े मारते है और कभी-कभी अपने आप को कीलों से सूली पर लटका लेते हैं.
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शामिल होते हैं और स्वास्थ्य की चिंता किये बिना और चर्च की अस्वीकृति के बावजूद, तपस्या के प्रतीक के रूप में स्वयं अपने आप को कोड़े मारते है और कभी-कभी अपने आप को कीलों से सूली पर लटका लेते हैं.
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माना कि कल जब उसने तुझसे दुर्व्यवहार किया तब तेरा कोई दोष न था, तू इस व्यवहार का पात्र न था, पर आज तो तू स्वयं अपने आप को दंड का भागी (पात्र) बना रहा है.
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लेकिन मुझे इस समय मेरे गुरूजी परम पूज्यनीय ऋषि प्रभाकर जी की बात याद आ गई कि तुम जितनी बार किसी दूसरे को कोई बात कहते हो उतनी बार तुम स्वयं अपने आप को भी वह बात कह रहे होते हो ।
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और क्या किसी दिन हमें भी यह नहीं कहना पड़ेगा कि हम अभागे न मालूम क्या-क्या व्यर्थ का सामान बचाते रहे और उस सबके मालिक को-स्वयं अपने आप को खो बैठे? मनुष्य के जीवन में इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं होती है।
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ऐसे बाल कवियों के पिताश्री जो स्वयं अपने आप को कवि समझते हैं कवि सम्मेलनों में बार बार हूट होने के कारण ही अपनी कविता को अपने बच्चों के मुख से लोगों को सुना कर उनसे प्रशंसा पाकर आत्म संतुष्टि प्राप्त कर लेते हैं।
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वस्तुतः प्रत्येक दुर्घटना के सन्दर्भ मे हर हाल मे व्यक्ति को दूसरों पर दोषारोपण दोषी समझने के बजाय स्वयं अपने आप को ही दोषी व जिम्मेदार मानना चाहिए कि हमने इस सम्भावना को ध्यान मे रखकर वाहन क्यों नहीं चलाया कि दूसरा वाहन चालक शराब पीकर वाहन चला रहा हो सकता है और&
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कुछ लोग ऐेसे भी होते है जो अपनी बेटी और बहू में भी फर्क करते हैं और उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं, उसे मारते हैं और कुछ लोग तो अपनी बहू को जलाकर मार भी देते हैं, और यदि वह नहीं मारती तो उसे इतना प्रताडित किया जाता है कि वह स्वयं अपने आप को खत्म कर लेती है।
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इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने ईश्वर के क़ुरआनी वचनों के पूरे होने का उदाहरण पेश करते हुए ईरानी राष्ट्र का भाग्य बदल जाने का उल्लेख किया और कहा कि हम ईरानी जनता ने क़ुरआने मजीद की इस आयत का अनुभव किया कि ईश्वर किसी जाति की हालत उस समय तक नहीं बदलता जब तो वह जाति स्वयं अपने आप को बदलने का प्रयास नहीं करती।
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: किसी भी सधवा नारी के लिए उसका सौभाग्य उसका पति होता है और कैकेयी को पता था कि यदि राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास और अपने पुत्र के लिए राजगद्दी मांगकर वह अपने पति के प्राणों को संकट में डाल स्वयं अपने आप को विधवा बना रही है क्योंकि राम उन्हें अपने प्राणों से भी प्रिय है और वह राम के बगैर जी न सकेंगे ।