#व्याकरण-इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
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ज्ञातव्य है कि संत श्री पुष्करदास जी महाराज द्वारा संगीतबद्ध एवं स्वरित नानी बाई का मायरा के केसेट एवं सीडी पूरे भारत में अत्याधिक लोकप्रिय है।
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जिनमें स्वरित, उदात्त, अनुदात्त, प्लुत, गुंकार, जिह्वामूलीय तथा विभिन्न प्रकार के अनुस्वार तथा अनुनासिक एवं विसर्ग आदि स्वर चिह्न प्रमुख हैं।
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3. व्याकरण-इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
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सभी वेदों के सस्वर पाठ के लिए उदात्त, अनुदात्त और स्वरित के विशिष्ट चिह्र हैं किंतु सामवेद के गान के लिए ऋषियों ने एक पूरी स्वरलिपि तैयार कर ली थी।
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सभी वेदों के सस्वर पाठ के लिए उदात्त, अनुदात्त और स्वरित के विशिष्ट चिह्र हैं किंतु सामवेद के गान के लिए ऋषियों ने एक पूरी स्वरलिपि तैयार कर ली थी।
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स्वरूप वह चेतना है जो स्वरूप से स्फुट होता है-स्वरित-जिससे रचना बहती है और नाम एवं रूप के साथ प्रकट होती है-जिसे साकार कहते हैं।
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नहीं काष्ठगत अप्रकट पावक ऊष्मा देता है मधुकर भीतर की प्रकटिता अग्नि जब तब होती दाहक निर्झर बाहर भीतर के नारायण को कर एकाकार स्वरित टेर रहा सारूप्यसुन्दरी मुरली तेरा मुरलीधर।।115।।
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स्वरूप वह चेतना है जो स्वरूप से स्फुट होता है-स्वरित-जिससे रचना बहती है और नाम एवं रूप के साथ प्रकट होती है-जिसे साकार कहते हैं।
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जिस प्रकार से वेद का सस्वर पाठ होता था उसी प्रकार बैबिलोनिया में भी होता था और “अ” स्वरित का चिन्ह था, “ए” विकृत स्वर का, “इ” उदात्त का “उ” अनुदात्त का।