तुम नहाये रात भर जिस ठंडी मीठी चांदनी में उसके लिये रात भर चांद धूप में जलता रहा आख़िरी शेर काफ़ी दमदार रहा | कई मायने निकलते हैं इस के | चाँद का धूप में जलना किसान की मेहनत भी हो सकती है तो मां की स्वार्थहीन ममता भी | सुंदर पंक्तियाँ | वैसे लय की कमी है और एक दो शेर कुछ कमज़ोर से लगे | आप इस से बेहतर लिख चुके हैं |:-)
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समस्या तो इस विचार में ही छुपी हुई है कि सरकारों और राजनीतिज्ञों पर फिर वे चाहे अमीर हों या गरीब, लोकतांत्रिक या तानाशाह या बढ़ते वैश्विक युद्ध या अकाल के अगाध गर्त से निकलने का प्रयास कर रहे हों, पर क्या सहज भरोसा किया जा सकता है कि वे मानवता के प्रति स्वार्थहीन एवं बिना शर्त लगाए ऐसे लोग, जिसमें गरीब, प्रतिकूल परिस्थितियों में रहने वाले, भूखे एवं बीमार शामिल हैं के साथ साझा लगाव दिखा पाएंगे?
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समस्या तो इस विचार में ही छुपी हुई है कि सरकारों और राजनीतिज्ञों पर फिर वे चाहे अमीर हों या गरीब, लोकतांत्रिक या तानाशाह या बढ़ते वैश्विक युद्ध या अकाल के अगाध गर्त से निकलने का प्रयास कर रहे हों, पर क्या सहज भरोसा किया जा सकता है कि वे मानवता के प्रति स्वार्थहीन एवं बिना शर्त लगाए ऐसे लोग, जिसमें गरीब, प्रतिकूल परिस्थितियों में रहने वाले, भूखे एवं बीमार शामिल हैं के साथ साझा लगाव दिखा पाएंगे?