मैं आप से कह रहा हूं, यदि हम स्वंय की अत्याचारी शाही काल के ईरान से तुलना करें तो यह विशेषताएं नज़र आएंगी किंतु यदि हम वांछित इस्लामी देश ईरान से तुलना करें तो हमारे सामने अभी लंबा समय है।
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जमीन, जन, जानवर के पीछे हो गये और उपरोक्त के तुलनात्मक हम स्वंय भू हो गये जिससे हमारे अन्दर अहं का भी प्रार्दुभाव हो गया चूँकि साधारण गाँव के जीवन की आवश्यकता खेतोँ से पूरी हो जाती थी ।
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आवलीगत व पुष्पावकीर्ण रूप में अवसिथत बत्तीस लाख विमानों के स्वामी महाराजा इन्द्र जिनकी आयु 2 सागरोपम की है वे उत्तम वैकि्रयक शरीर के द्वारा अनेकों विकि्रयाओं को सम्पन्न करने में सक्षम हैं आइये हम स्वंय उन से साक्षात्कार करते हैं।
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भाषा और बोलने की क्षमता, जो कि आज मनुष्य के अन्दर पायी जाती है, उसे चाहे धर्म की दृष्टि से मंत्र शक्ति मानें या विज्ञान के दृष्टि से एक रसायनिक प्रक्रिया, परन्तु हम स्वंय के लिए उसके सर्जन-कर्ता व नियंत्रक स्वंय ही है।
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ऐसे में हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम स्वंय जागरूक होने के साथ ही अपने आस-पास के लोगांे को जागरूक करे और 0 से 5 साल तक के मासूम बच्चो को पोलियो की दो बूंद पिलवाकर उनका भविष्य उज्जवल करने में सहयोग करंे।
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भाषा और बोलने की क्षमता, जो कि आज मनुष्य के अन्दर पायी जाती है, उसे चाहे धर्म की दृष्टि से मंत्र शक्ति मानें या विज्ञान के दृष्टि से एक रसायनिक प्रक्रिया, परन्तु हम स्वंय के लिए उसके सर्जन-कर्ता व नियंत्रक स्वंय ही है।
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हिन्दी का उपयुक्त संचार करने के लिये यथा संभव बोलचाल में प्रयोग करें, हिन्दी पढ़ना और लिखना सीखें और सीखायें जिससे एक ओर हमारा युवा वर्ग अपनी राष्ट्रभाषा मे निपुण हो सके और दूसरी ओर हम स्वंय विरासत में प्राप्त इस संपदा का उपभोग कर सकें।
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तो उन अभिशप्त कानों में पिघला सीसा उड़ेलने का विधान है “, क्यों भई? क्या यह भारतवर्ष यानि ” जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ” ' के उपज नही थे? या हम स्वंय ही इतने जनेऊ-संवेदी क्यों हैं, भई? नेतृत्व चुनते समय विकल्पहीनता का रोना रो..
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तो उन अभिशप्त कानों में पिघला सीसा उड़ेलने का विधान है “, क्यों भई? क्या यह भारतवर्ष यानि ” जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ” ' के उपज नही थे? या हम स्वंय ही इतने जनेऊ-संवेदी क्यों हैं, भई? नेतृत्व चुनते समय विकल्पहीनता का रोना रो..
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अन्त मे जब हमारे पास और काम करने की शक्ति नहीं रह जाती तब हम सोचते है कि शायद जो काम हम स्वंय करना चाहते थे, जिसमें हमें रूचि थी हमें वही करना चाहिए था तब शायद हमें हमारी असली मंजिल मिल जाती और हम सही रूप में सफल होते ।