और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कोढ़ी से भागने और बीमार ऊँटों को स्वस्थ ऊँटों के पास न लाने का हुक्म देना, कारणों से बचाव करने के अध्याय से है, उस का मतलब यह नहीं है कि कारण स्वयं प्रभाव डालते हैं ; क्योंकि कारण स्वत: प्रभाव नहीं डालते हैं, किन्तु हमारे लिए उचित है कि उन कारणों से बचाव करें जो आपदा का कारण बन सकते हैं ; इसलिए कि अल्लाह तआला का फरमान है: “ अपने आप को विनाश न करो।
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कुरआन की शिक्षा और आदेश यह है कि “काफिरों का कत्ल करो।” (समीक्षा क्रम सं0 2) कोई बताए कि कुरआन का अवतरण किस देश में कब और किस प्रकार हुआ? कुरआन में जब यह हुक्म दिया गया तब कुरआन और पैग़म्बर को मानने वाले कितने लोग थे? क्या 1000-1500 लोगों को ये हुक्म देना कि सारी दुनिया के लोग काफ़िर हैं, इन्हें जहां पाओ कत्ल करो, औचित्यपूर्ण और मुसलमानों के हित में था? क्या 1000-1500 आदमी सारी दुनिया के काफ़िरों को कत्ल कर सकते हैं?
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अल्लाह ने नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम साफ़ लफ़्ज़ो मे कहला दिया के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम को इल्म गैब नही | दूसरी बात ये के इस आयत मे ये भी कहलाया जा रहा हैं के नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम के पास वहयी आती हैं जिसके ज़रिये उन्हे सारी बातो का इल्म होता हैं लिहाज़ा नबी सल्लल लाहो अलैहे वसल्लम कभी भी कोई बात अपनी तरफ़ से नही कहते उनका किसी बात का बताना या हुक्म देना सिर्फ़ वहयी इलाही के ज़रिये होता हैं जैसा के कुरान मे एक जगह और फ़रमाया-