(6) नैयायिक असिद्ध, विरुद्ध, अनैकांतिक, प्रकरणसम तथा कालात्ययापदिष्ट ये पाँच हेत्वाभास मानते हैं, किंतु वैशेषिक विरुद्ध, असिद्ध तथा संदिग्ध, ये ही तीन हेत्वाभास मानते हैं।
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(6) नैयायिक असिद्ध, विरुद्ध, अनैकांतिक, प्रकरणसम तथा कालात्ययापदिष्ट ये पाँच हेत्वाभास मानते हैं, किंतु वैशेषिक विरुद्ध, असिद्ध तथा संदिग्ध, ये ही तीन हेत्वाभास मानते हैं।
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(6) नैयायिक असिद्ध, विरुद्ध, अनैकांतिक, प्रकरणसम तथा कालात्ययापदिष्ट ये पाँच हेत्वाभास मानते हैं, किंतु वैशेषिक विरुद्ध, असिद्ध तथा संदिग्ध, ये ही तीन हेत्वाभास मानते हैं।
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(6) नैयायिक असिद्ध, विरुद्ध, अनैकांतिक, प्रकरणसम तथा कालात्ययापदिष्ट ये पाँच हेत्वाभास मानते हैं, किंतु वैशेषिक विरुद्ध, असिद्ध तथा संदिग्ध, ये ही तीन हेत्वाभास मानते हैं।
45.
इस हेत्वाभास के पाँच प्रकार होते हैं-सव्यभिचार, विरुद्ध, प्रकरणसम् (सत्प्रतिपक्ष) साध्यसम (असिद्ध) और कालातीत (बाध) ।
46.
पक्ष में हेतु के नहीं रहने से साध्यसम (असिद्ध) हेत्वाभास होता है और अबाधितत्त्व नहीं हरने से कालातीत (बाध) हेत्वाभास होता है।
47.
पक्ष में हेतु के नहीं रहने से साध्यसम (असिद्ध) हेत्वाभास होता है और अबाधितत्त्व नहीं हरने से कालातीत (बाध) हेत्वाभास होता है।
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[73] जो पदार्थ हेतु के सभी लक्षणों से युक्त नहीं है किन्तु सादृश्य के कारण हेतु की तरह प्रतीत होता है उसे हेत्वाभास कहते हैं।
49.
इनमें प्रत्यक्ष, अनुमान, हेतु और हेत्वाभास, वाद, प्रवचन, सप्तभंगी, नय, प्रमाण, निक्षेप आदि की प्रतिष्ठा बड़ी ही तार्किक कुशलता के साथ हुई है।
50.
अत: कृष्ण की हम जितनी भी पूजा क्यों न करें, उनका उपर्युक्त कथन न्यायशास्त्र की दृष्टि से हेत्वाभास से ग्रस्त है क्योंकि वह द्विपाश के फंदे में फंसा है।