| 1. | अकलंक ने इसे स्वतंत्र प्रमाण घोषित किया है।
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| 2. | अकलंक जैन न्याय के संस्थापक कहे जाते हैं।
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| 3. | पाप कर्म कलंकों से, अकलंक रहे गुरु ||16||
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| 4. | जो हैं इन्द्रियजित तथा, ज्ञानी भी अकलंक ।
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| 5. | ये अकलंक के सिद्धांतों के समर्थक हैं।
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| 6. | अकलंक हास्य मुख से सोयी थी-
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| 7. | अकलंक के अनुसार प्रमाण के दो प्रधान भेद हैं-प्रत्यक्ष और परोक्ष।
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| 8. | इस वार्तिक के भाष्य की रचना भी स्वयं अकलंक ने की है।
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| 9. | अकलंक ने मन और इन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान को सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष कहा है।
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| 10. | उनके बाद होने वाले जैन आचार्यों ने अकलंक का ही अनुगमन किया है।
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