| 1. | बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
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| 2. | बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
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| 3. | ' हित अनहित पशु पक्षिंह जाना.... ”
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| 4. | हित अनहित जगत में जान पड़त सब कोई
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| 5. | अनहित सोनित सोष सो सो हित सोषनिहारु ॥
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| 6. | हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
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| 7. | * बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
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| 8. | रहिमन तीन प्रकार तें, हित अनहित पहिचान।
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| 9. | हित अनहित या जगत में जानि परै सब कोय।।
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| 10. | सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
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