चाहे अभ्युपगम हो, चाहे सिद्धांत, विश्वास दोनों में
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निवृत्ति का प्राधान्य संसारवाद के अभ्युपगम पर आश्रित था।
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होना इसी प्रकार के अभ्युपगम हैं।
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कार्यकारण का हुआ तो इस प्रकार का मानना अभ्युपगम कहलाता है।
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यह अभ्युपगम, जो ब्रह्मवाद के नजदीक आता है, 'सब कुछ पृथक है'
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ऐसे ही अभ्युपगम ग्राह्य होते हैं जो मनुष्य की बुद्धि में आ सकते हैं और
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अभ्युपगम-जो किसी दूसरे सिद्धांत की सिद्धि के लिए थोड़ी देर के लिए स्वीकृत किया जाता है।
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अभ्युपगम-जो किसी दूसरे सिद्धांत की सिद्धि के लिए थोड़ी देर के लिए स्वीकृत किया जाता है।
9.
यह अभ्युपगम, जो 'सब कुछ स्वलक्षण है' इस बौद्धमत से सामर्थ्य रखता है, इत्यादि बहुत से सिद्धांत हैं।
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" यदि यह भी स्वीकार कर लिया जाय कि काण्ट परिकल्पनात्मक निर्णय कोव्यावहारिक निर्णय के अधीन कर देता है, तो आधुनिक अर्थक्रियावाद की भाँतिवह निर्णय को सहज प्रवृति और आवेग अथवा संवेगात्मक अभ्युपगम के अधीन नहींकर देता.