| 1. | को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम
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| 2. | ” भरत भाई कपि से उऋण हम नाहीं।”
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| 3. | धँस गया धरा में कपि गह-युग-पद, मसक दण्ड
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| 4. | कपि सुग्रीव बंधु भय-ब्याकुल तिन जय छत्र फिराई।
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| 5. | दो0-सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार।
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| 6. | विदित बिसाल ढाल भालु कपि जाल की है,
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| 7. | कपि के वचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास।
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| 8. | डांकी कांग लाल ताई से विशाल कपि है।
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| 9. | जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥
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| 10. | दो.-ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति।।
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