दूसरों के कैमरे में अपनी छवि का क़ैद होना, विदेशियों के बीच अपनी संस्कृति का सिक्का जमाना, बड़ा अच्छा लगा।
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यह एक ऐसा जाल है जिसमें समाज के अधिकतर लोग क़ैद होना चाहते हैं और इससे बाहर निकलने की कोशिश नहीं करना चाहते हैं.
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यह एक ऐसा जाल है जिसमे समाज के अधिकतर लोग क़ैद होना चाहते हैं और इससे बहार निकलने की कोशिश नहीं करना चाहते हैं.
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पहली बंदिश तो 5 साल से अधिक की क़ैद होना है, दूसरी यह है कि संबंधित क़ैदी आतंकवाद के मामले में लिप्त न हो...
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अगर यह हमारे लिए सरफ़रोश है तो हमारा क़ैद होना उस मौसीकी की तरह होता है जिसे छेड़ कर दिल को अजीब सा सुकून मिलता है...
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अगर यह हमारे लिए सरफ़रोश है तो हमारा क़ैद होना उस संगीत की तरह होता है जिसे छेड़ कर दिल को अजीब सा सुकून मिलता है...
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लेकिन ऐसा नहीं कि सभी क़ैदियों को यह सुविधा मिलने वाली है...पहली बंदिश तो 5 साल से अधिक की क़ैद होना है, दूसरी यह है कि संबंधित क़ैदी आतंकवाद के मामले में लिप्त न हो...या उस पर इससे संबंधित कोई मुकदमा न चल रहा हो.
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वाह पार्क और बागीचों में पत्थरों से की गयी सजावट ही नुमायाँ रहती है आजकल,,, वो प्रकृति के अनुपम नज़ारे न जाने कहाँ लोप होते जा रहे हैं वाक़ई,,, जनाब तिलक राज जी से की गयी जुगलबंदी रंग ले आए है जनाब शेर में,,,शहरों के आदमी का दडबों में क़ैद होना बहुत स्वाभाविक लग रहा है...
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वाह पार्क और बागीचों में पत्थरों से की गयी सजावट ही नुमायाँ रहती है आजकल,,, वो प्रकृति के अनुपम नज़ारे न जाने कहाँ लोप होते जा रहे हैं वाक़ई,,, जनाब तिलक राज जी से की गयी जुगलबंदी रंग ले आए है जनाब शेर में,,, शहरों के आदमी का दडबों में क़ैद होना बहुत स्वाभाविक लग रहा है...