प्रधानमंत्री शेख हसीना तटस्थ काम चलाऊ सरकार की नियुक्ति से इन्कार करती रही हैं।
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सितंबर-अक्टूबर 1999 के चुनाव तक काम चलाऊ सरकार के रूप में काम करती रही ।
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की काम चलाऊ सरकार की साख पूरी तरह समाप्त होने की कहानी ही बयान करता है।
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अगली संवैधानिक व्यवस्था होने तक मात्र एक काम चलाऊ सरकार का गठन करना था ताकि देश का दैनिक सामान्य कार्य संचालन हो सके।
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चरण सिंह की काम चलाऊ सरकार के खिलाफ इंदिरा गांधी ने कांग्रेस की ओर से प्याज के आसमान छूते दाम को मुद्दा बनाया था।
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राज्य बनने के बाद नित्यानंद स्वामी के मुख्यमंत्रित्व में बनी पहली काम चलाऊ सरकार ने राज्य में १ ८ नए डिग्री कॉलेज खोलने की घोंषणा की।
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पर वे नई या इसके स्थान पर जो काम चलाऊ सरकार बनाने के ल िए जो शर्तें रख रहे हैं वे सेना और न्यायपालिका के हस्तक्षेप की प्रस्तावना हो सकती हैं।
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एक काम चलाऊ सरकार देश के लिए सही निर्णय कभी भी नहीं ले सकती है और जब तक दीर्घकालिक हितों पर ध्यान देकर नीतियां नहीं बनायीं जायेंगीं तब तक देश को उनका सही लाभ भी नहीं मिल पायेगा.
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1980 में चरण सिंह की काम चलाऊ सरकार के खिलाफ इंदिरा गांधी ने कांग्रेस की ओर से प्याज के आसमान छूते दाम को मुद्दा बनाया था, जबकि 1998 में शीला दीक्षित ने बीजेपी के खिलाफ इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था।
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अतः अब यदि राजनितिक चेतना सपा के पास नहीं है तो यह समझना चाहिए की उत्तर प्रदेश सरकार बदलाव नहीं यथास्थिति की सरकार हो जायेगी जो किसी तरह काम चलाऊ सरकार जैसा काम करेगी और जनता का विश्वास खो देगी की यह कोई बड़ा परिवर्तन भी करने जा रही है.