| 1. | प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने बार-बार कहा-हे तात!
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| 2. | हे तात! यह सुन्दर और गुप्त रामचरितमानस
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| 3. | तो टाटा शब्द तात से निकला है ।
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| 4. | 11 तात चिन्मात्ररूपोऽसि न ते भिन्नमिदं जगत ।
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| 5. | मुनि ने कहा-हे तात! अँधेरा हो गया।
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| 6. | कामायनी सा खण्डकाव्य का शुभारम्भ करें तात ।
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| 7. | तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
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| 8. | तात-पिता, भ्राता, मित्र, प्यारा, तप्त, प्रशस्ति
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| 9. | तात कहां मझधार में छोड़ गए हमको...
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| 10. | अब हे तात! आप मुझे श्रीरामजीकी अत्यन्त
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