| 1. | दन्ती हमको उस ज्ञान और ध्यान में प्रेरित करें।
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| 2. | दन्ती हमको उस ज्ञान और ध्यान में प्रेरित करें।
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| 3. | दन्ती बहुत अधिक गर्म होती है।
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| 4. | ¬ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ' ' मंत्र का जप करें।
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| 5. | गणेश गायत्री मंत्र-” ú वक्रदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात।
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| 6. | अजवायन, चित्रक मूल की छाल, दन्ती और बच को एकसाथ मिलाकर चूर्ण बना लें।
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| 7. | ॐ एकदन्ताय विद्यमहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात मंत्र का जाप मूंगे की माला से नियमित करें।
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| 8. | ॐ एकदन्ताय विद्यमहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात मंत्र का जाप मूंगे की माला से नियमित करें।
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| 9. | फिर निम्नोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए ध्यान करें-गणपतये नमः एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।
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| 10. | दन्ती तीखी, कड़वी, गर्म, उत्तेजक, बवासीर, घाव, दर्द आदि रोगों को नष्ट करने वाली होती है।
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