उसके साथी नारद को दासी-पुत्र और अनाथ बालक कहा करते थे।
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गोबिन्दराव के समय में यह बात है क्योंकि वह चार औरस ओर 7 दासी-पुत्र छोड़
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एक स्वर उठता है, विदुर का, दासी-पुत्र विदुर का, पराक्रमियों के सुप्त और मर्यादित रक्त से विलग।
5.
खाया जिस थाली में, उसी में किया छेद उसने, दासी-पुत्र जहाँ प्राण प्यारा, डाला वहीं भेद उसने ।
6.
सूतमहर्षि ने नारदमुनि की कहानी सुनाना प्रारंभ किया-पिछले जन्म में नारद ने एक दासी-पुत्र के रूप में जन्म लिया था।
7.
रम्भाअप्सरा का नृत्य देख सम्मोहित होने के कारण क्रुद्ध ब्रह्माजीने उन्हें शूद्र-योनि प्राप्त होने का शाप दिया, जिससे गोपराजद्रुमिलकी पत्नी कलावतीके गर्भ से उत्पन्न हो दासी-पुत्र कहलाए।
8.
यह भी कहा जाता है कि बिरादरी के कुछ लोगों ने राजपूतानी के पेट से पैदा हुए बालक को दासी-पुत्र ठहरा दिया और राज्य अधिकारी गुलाबसिंह को ठहराया।
9.
गोबिन्दराव के समय में यह बात है क्योंकि वह चार औरस ओर 7 दासी-पुत्र छोड़ गए थे, आनन्दराव सब में बड़ा था उसी को राज वाले मालिक समझते थे पर वह बुद्धिमान नहीं था इससे दूसरे हिस्सेदारों ने अपना तार जमाना चाहा गौविन्दराव ने दूसरे लड़के कान्हों जी को फसादी जान कर अपने सामने से कैद किया था।
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गोबिन्दराव के समय में यह बात है क्योंकि वह चार औरस ओर 7 दासी-पुत्र छोड़ गए थे, आनन्दराव सब में बड़ा था उसी को राज वाले मालिक समझते थे पर वह बुद्धिमान नहीं था इससे दूसरे हिस्सेदारों ने अपना तार जमाना चाहा गौविन्दराव ने दूसरे लड़के कान्हों जी को फसादी जान कर अपने सामने से कैद किया था।