| 1. | श्री कौणपादि निज समय में महाबली नरपति हुये।
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| 2. | मंगल हो, नरपति धृतराष्ट्र का मंगल हो।
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| 3. | ज्यों-ज्यों मिलती विजय, अहं नरपति का बढ़ता जाता है,
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| 4. | ज्यों-ज्यों मिलती विजय, अहं नरपति का बढ़ता जाता है,
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| 5. | सुरनर नरपति मुनिजन देवा, करते प्रभु चरणों की सेवा|
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| 6. | नरपति सिंह को संगठन का संरक्षक बनाया गया है।
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| 7. | यह नरपति नाल्ह की पोथी का विकृत रूप अवश्य है
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| 8. | नरपति नाल्ह की रचना बीसलदेव रासो।
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| 9. | 2. बीसलदेवरासो नरपति नाल्ह कवि विग्रहराज चतुर्थ उपनाम बीसलदेव का समकालीन
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| 10. | “कुछ रज कण ही छोड़ यहाँ से चल देते नरपति सेनानी!
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