सभी भारतीय भाषाओं में नाट्य-लेखन और नाट्य-प्रदर्शन की एक सुदीर्घ परम्परा विद्यमान रही है।
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से भी जुड़ता है | यह नाट्य-प्रदर्शन के समय अभिनेता के लिए अनिवार्यतः जरुरी होता
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कायदे से इसे दुबारा ठीक करके नाट्य-प्रदर्शन के लिए उपलब्ध करने का प्रयास किया जाना चाहिए था।
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गुलजार जी ने भी कभी कल्पना न की होगी कि ऐसा भी हो सकता है उनकी कविताओं का नाट्य-प्रदर्शन....।
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कायदे से इसे दुबारा ठीक करके नाट्य-प्रदर्शन के लिए उपलब्ध करने का प्रयास किया जाना चाहिए था, पर ऐसा हुआ नहीं।
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इसकी प्रेरणा शायद अंग्रेजी के कर्टेन रेजर से, यानी मुख्य नाटक शुरू होने के पहले दर्शकों को शांत रखने के लिए प्रस्तुत किये गये अल्पकालीन नाट्य-प्रदर्शन से आयी।
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सर्वाधिक उल्लेखनीय बात यह है कि नाट्य-प्रदर्शन के साथ ही कथाकार स्वयंप्रकाश एवं रमेश उपाध्याय ने उस आयोजन में कहानी पाठ किया, जिन्हें पूरे मनोयोग से सुना तथा सराहा गया ।
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सर्वाधिक उल्लेखनीय बात यह है कि नाट्य-प्रदर्शन के साथ ही कथाकार स्वयंप्रकाश एवं रमेश उपाध्याय ने उस आयोजन में कहानी पाठ किया, जिन्हें पूरे मनोयोग से सुना तथा सराहा गया ।
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धारा-प्रवाह पद्यबद्ध संवाद, प्रवाहमान अदाकारी...! मन मुग्ध हो गया...! ऐसा मुग्ध की मैं कल्पना करने लगा, का श...! मैं भी गोविन्दराव की भूमिका कर पाऊँ....! यह ठाकुरवारी पर उनका अंतिम नाट्य-प्रदर्शन था।